उत्तराखंड की सुंदर राजधानी, पर्वतीय इलाकों का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां के सुरम्य पर्वतों, शांत झीलों और भव्य घाटीओं का मनोहर नजारा हर व्यक्ति के मन को मोह लेता है। इसके साथ ही, यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुधरती जा रही है। परंतु पलायन भी इस इलाके की एक चुनौती बन रहा है। इसे देखते हुए एक जवान ने स्वरोजगार का मार्ग चुना है और अपने यहां के भूमि को ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उपयोगी बना दिया है।
मनोज सेमवाल नाम के इस युवा ने ड्रैगन फ्रूट को अपने रोजगार के रूप में चुना है और अब वह इस फल की खेती के सफल मॉडल के रूप में दूसरों के सामने उभर रहे हैं। उन्होंने अपने इरादे के साथ कठिनाइयों का सामना किया और साबित किया है कि अगर विचार और परिश्रम सही हो तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है।
इसकी कहानी एकदम गजब है। वर्ष 2017 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड के दौरे पर आए थे, उन्हें एक होटल में खाने का इंतजाम किया गया था। वहां उन्हें ड्रैगन फ्रूट को पहली बार देखने का मौका मिला। प्रधानमंत्री मोदी को यह फल पसंद आया और इससे मोहित हो गए।
इस पल से ही मनोज की इस फल में रुचि जगी और उन्होंने इसके बारे में खुद को जागरूक करना शुरू कर दिया। वे इस फल के बारे में जानकारी जुटाने लगे और कई साल की रिसर्च के बाद, वे साल 2021 में चंडीगढ़, गुजरात और वियतनाम से ड्रैगन फ्रूट के 250 पौधे मंगाए। उन्होंने इन पौधों को देहरादून के नवादा इलाके में उगाने का प्रयास किया और वे आज फल फूलने वाले इन पौधों के बीच दिखाई देते हैं।
ड्रैगन फ्रूट की खेती एक स्वरोजगार के रूप में बड़ा मौका हो सकती है। यह फल दो साल में तैयार हो जाता है औ
र अगर इसे अच्छी तरह देखभाल किया जाए, तो एक बार पौधा लगाने पर 25 से 30 साल तक इससे कमाई हो सकती है। इसकी कीमत 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक होती है, जिससे किसानों को अच्छी आय प्राप्त होती है।
ड्रैगन फ्रूट विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसके सेवन से अनेक स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। इसमें विटामिन सी, विटामिन बी1, बी2, बी3 और एंटी कार्सिनोजन एजेंट्स होते हैं जो सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। ड्रैगन फ्रूट के सेवन से बैड कोलेस्ट्रोल का स्तर कम होता है और अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाने में मदद मिलती है। यह कैंसर रोगियों, प्रेग्नेंट महिलाओं, शुगर पेशेंट और ज्वाइंट पेन से जूझ रहे लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है। एक ड्रैगन फ्रूट खाने से 8 सेब या 4 कीवी के बराबर पोषण मिलता है।
ड्रैगन फ्रूट भारत का स्थानीय फल नहीं है। यह मूल रूप से दक्षिण अमेरिकी देशों में जंगली फल के तौर पर पाया जाता है। हालांकि वर्तमान में इसकी बढ़ती चाह ने भारत में भी इसकी खेती को उधारा बना दिया है। गुजरात, चंडीगढ़ और वियतनाम जैसे राज्यों में इसके पौधों की खेती हो रही है और उनमें से एक युवा मनोज सेमवाल ने इसे देहरादून के नवादा इलाके में उगाने का प्रयास किया है।
मनोज सेमवाल की इस सफलता से उत्तराखंड के युवाओं को स्वरोजगार के अवसर मिल सकते हैं और इससे उन्हें अपने गांव और पर्वतीय इलाकों में रोजगार की बेहतर व्यवस्था का उदाहरण मिल सकता है। उनके इस प्रयास से समृद्धि के द्वार खुल सकते हैं और इससे उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों का भविष्य भी रोशन हो सकता है। आगे बढ़कर और अधिक युवा इस प्रेरणा को अपनाएंगे तो इस इलाके में गरीबी का अंत हो सकता है और सभी को समृद्धि का संसार मिल सकता है।
इस प्रकार, मनोज सेमवाल ने अपने उत्साह, साहस और परिश्रम से अपने सपनों को पूरा किया है और स्वयं को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। उनकी यह उदाहरणीय कहानी हमें यह दिखाती है कि अगर हम सही दिशा में कदम बढ़ाते हैं और मेहनत से प्रयास करते हैं, तो दुनिया को चुनौतियों का सामना करना सीखा सकते हैं और सफलता के सम्राट बन सकते हैं।
आखिर में, हम सभी को मनोज सेमवाल के उदाहरण से प्रेरित होना चाहिए और स्वयं को स्वरोजगार के रास्ते पर ले जाने का संकल्प करना चाहिए। यह समय हमारे लिए उद्यमी बनने का है, स्वयं को अपने कदमों पर खड़ा करने का है, और सपनों को हकीकत में बदलने का है। हम सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि सफलता और समृद्धि का मार्ग सिर्फ कठिनाइयों से भरा होता है, लेकिन सही रणनीति और निरंतर प्रयास से विजय सुनहरी अंजुली जैसी होती है।