‘खबरों के खिलाड़ी’ की नई कड़ी के साथ एक बार फिर हम आपके सामने प्रस्तुत हैं। बीते हफ्ते की प्रमुख खबरों के सधे हुए विश्लेषण को अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर शनिवार रात नौ बजे लाइव देखा जा सकता है।
इस हफ्ते महाराष्ट्र की राजनीति चर्चा में है। महाराष्ट्र में हालात तनावपूर्ण हुए। टीपू सुल्तान और औरंगजेब को लेकर बयानबाजी हुई। इस बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ के संपादकीय में लिखा गया कि भाजपा को अब हिंदुत्व के मुद्दे के अलावा भी देखना होगा और सिर्फ मोदी के चेहरे और हिंदुत्व से ही काम नहीं चलेगा। हालांकि, महाराष्ट्र में लगातार हिंदुत्व के मुद्दे पर बयानबाजी की जा रही है तो क्या भाजपा की हकीकत और आरएसएस की नसीहत में अंतर दिख रहा है?….इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए हमारे साथ विनोद अग्निहोत्री, सुमित अवस्थी, आदेश रावल, संजय राणा, शिवम त्यागी जैसे विश्लेषक मौजूद रहे। पढ़िए उनकी चर्चा के अहम अंश…
‘आरएसएस ने जो नसीहत दी है, क्या वह वाकई में गंभीर है या फिर वह रणनीति का हिस्सा है? ये देखने वाली बात है। कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस जोश में दिख रही है और यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि जिस तरह से कर्नाटक में कांग्रेस ने रणनीति बनाकर चुनाव जीता, उससे लग रहा है कि कांग्रेस रिवाइव हो गई है। ‘ऑर्गनाइजर’ के संपादकीय में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी लिखा गया है। कर्नाटक में जिस तरह से भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उससे विपक्ष को भी उस पर हमला करने का मौका मिल गया है। कुछ समय पहले तक अजेय लग रही भाजपा अब अचानक से इस स्थिति में कैसे पहुंच गई है? भाजपा ने अपनी योजनाओं से एक लाभार्थी वर्ग तैयार किया है लेकिन कांग्रेस भी अब उसका काउंटर कर रही है और अपने चुनावी घोषणा पत्र में चीजें मुफ्त देने की बात कर रही है, जिससे भाजपा को नुकसान भी हो रहा है।’
विनोद अग्निहोत्री
‘जब यह चर्चा चल रही है तो इसी बीच बिहार भाजपा के अध्यक्ष ने राहुल गांधी की तुलना में आपत्तिजनक बयान दे दिया। भाजपा की समस्या ये है कि उन्हें थक हारकर हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव ही समझ आता है। आरएसएस से ही हिंदुत्व की विचारधारा निकली है, लेकिन आरएसएस अब कह रही है कि सिर्फ हिंदुत्व से काम नहीं चलेगा! चूंकि अधिकतर भाजपा नेता आरएसएस से आए हैं तो हिंदुत्व उनके जीवन में रचा बसा है इसलिए गाहे-बगाहे भाजपा के नेता हिंदुत्व को लेकर बयानबाजी करते रहते हैं लेकिन संघ की बात से सहमत हूं कि अब सिर्फ मोदी के चेहरे और हिंदुत्व से बात नहीं बनेगी। कांग्रेसियों को भी एक समय इंदिरा गांधी के आगे कुछ नहीं दिखता, अब वैसी ही स्थिति भाजपा में पीएम मोदी को लेकर है। संघ समझ रहा है कि हिंदुत्व को लेकर चीजें चरम पर पहुंच चुकी हैं, इसलिए अन्य मुद्दों पर भी फोकस करने की जरूरत है।’
‘इसमें दोराय नहीं कि भाजपा की लोकप्रियता में मोदी जी का बड़ा हाथ है, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को कमतर आंकना गलत होगा क्योंकि वह पार्टी को दो सीटों से सत्ता में लेकर आए थे। अटल जी के समय में पार्टी ने कई नेताओं को खड़ा किया था, लेकिन आज उसकी साफ कमी है। उसी तरह नेहरू के समय में जो कांग्रेस के नेता थे, वो इंदिरा के समय में किनारे कर दिए गए और इंदिरा ही पार्टी हो गईं थी। ये समस्या है। जब पार्टी नेता आश्रित हो जाती है तो उसका ढलान भी आता है और संघ की चिंता यही है। संघ चाहता है कि पार्टी संतुलित रहे।’
संजय राणा
‘भाजपा एक पद्धति पर काम करती है। भाजपा में आज चार बड़े नेताओं के नाम नहीं गिनाए जा सकते और पार्टी सिर्फ दो-तीन नेताओं तक सिमट गई है। धरातल पर काम करने की जरूरत है। इंदिरा गांधी के बाद पीएम मोदी बड़े जननेता हैं, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर भाजपा नेतृत्व नहीं उभर पा रहा है। संघ की सलाह बिल्कुल सही है। औरंगजेब मुद्दे पर गिरिराज सिंह ने जो बयान दिया है वह प्रतिक्रिया में दिया गया है। आज भाजपा कहीं ना कहीं रिएक्टिव मोड में आ गई है और दूसरे की पिच पर खेल रही है। भाजपा एक परिवार की पार्टी नहीं है। यह संगठन की पार्टी है। कर्नाटक का चुनाव कोई बेंचमार्क नहीं है। आज लोगों का जो जुड़ाव भाजपा के साथ बना है, वो मोदी की वजह से बना है। अब अगर इस चेहरे में और चेहरे जुड़ जाएं तो भाजपा को फायदा मिलेगा। अमित शाह भी सक्रिय हो गए हैं और लगातार बैठकें कर रहे हैं।’
आदेश रावल
‘कर्नाटक का चुनाव पूरी रणनीति के तहत लड़ा गया, मुद्दों पर लड़ा गया। राजस्थान का झगड़ा चरम पर है और सड़क पर आ चुका है। कर्नाटक में भी झगड़ा था, लेकिन वह सड़क पर नहीं आया और कांग्रेस ने इस अंदरुनी कलह को नियंत्रित कर लिया और यही कांग्रेस की नई रणनीति है। कांग्रेस, क्षेत्रीय नेतृत्व को बढ़ावा दे रही है और अंदरुनी कलह से निपटा जा रहा है। राजस्थान में गहलोत ही कांग्रेस हैं और वही राज्य में पार्टी चला रहे हैं। राहुल गांधी ने समझ लिया है कि कैसे हम चुनाव जीत सकते हैं। विपक्षी एकता की बैठक को भी इसलिए टाला गया है ताकि इसमें राहुल गांधी शामिल हो सकें। भाजपा 80 करोड़ लोगों को राशन देने को उपलब्धि बता रही है, लेकिन यह शर्मनाक है कि जहां नए भारत की बात हो रही है तो वहां 80 करोड़ लोगों को राशन देना कहां की उपलब्धि है?’
शिवम त्यागी
‘जब आप लगातार जीतते रहते हैं तो आपकी लीडरशिप और नीतियों को भी सराहा जाता है लेकिन हार के बाद आत्ममंथन भी होता है। कर्नाटक में हार के बाद भी ऐसा ही हो रहा है। भाजपा की जितनी बड़ी मशीनरी है उसे देखते हुए नहीं लगता कि भाजपा चुनाव नतीजों का विश्लेषण नहीं कर रही होगी। राज्य स्तर पर नेतृत्व को खड़ा करना आज जरूरी हो गया है। रही बात लाभार्थी वर्ग की तो जहां-जहां कांग्रेस की सरकार बनी है, वहां वादे पूरे नहीं हो रहे हैं। सामाजिक कल्याण की नीतियों के विरोध में कोई नहीं है लेकिन अगर राज्य की आर्थिक स्थिति खराब है तो मुफ्त की रेवड़ी बांटने पर विचार करना चाहिए। अमेरिका के बारे में एक बात कही जाती है कि अमेरिका अपने बुनियादी ढांचे की वजह से बना है। आज देश में बुनियादी ढांचे का जो विकास हो रहा है, उस बदलाव को साफ देखा जा सकता है। पहले जो राशन मिलता था गेहूं, चावल होता था, आज तेल, दालें भी राशन में मिलता है।’