सोनिया मिश्रा/चमोली/थराली.उत्तराखंड को वीरों की भूमि भी कहा जाता है क्योंकि यहां के युवा सेना में जाकर देश सेवा करने के लिए सदैव तत्पर रहता है और यही कारण है कि सेना में सबसे अधिक संख्या उत्तराखंड के जवानों की ही रहती है. इस रिपोर्ट में हम ऐसे ही वीर शहीद अशोक चक्र से सम्मानित स्व. भवानी दत्त जोशी के बारे में आपको बता रहे हैं, जो दुश्मनों से लड़ते-लड़ते देश के लिए शहीद हो गए. आज उन्हीं के नाम से थराली के चेपड़ों में विशाल भव्य शहीद मेले का आयोजन किया जा रहा है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने थराली के चेपड़ों में तीन दिनों तक आयोजित होने वाले शहीद मेले को राजकीय मेला घोषित किया है. 2009 के बाद इस वर्ष यह शहीद मेला 6 से 8 जून तक आयोजित किया गया. मेले में पहुंचे मुख्यमंत्री धामी ने इसे राजकीय मेला घोषित किया.
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस मौके पर कहा कि भवानी दत्त जोशी के नाम से होने इस मेले को राजकीय मेला घोषित किया जा रहा है. वह ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ में वीरगति को प्राप्त हुए थे. हमारी कोशिश रहेगी कि उनके बलिदान को लोग याद रखें क्योंकि इससे आने वाली पीढ़ी प्रेरणा लेगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि सीमांत के इस क्षेत्र में विकास की बहुत संभावनाएं हैं और हम इस दिशा में निरंतर काम कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि सीमांत के इलाके भी विकास की दौड़ में आगे आएं और हम यह संकल्प जरूर पूरा करेंगे.
कौन थे शहीद भवानी दत्त जोशी?
15 जुलाई 1952 को उत्तराखंड के चमोली जिले के थराली के चेपड़ों में भवानी दत्त जोशी का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम ख्याली दत्त जोशी था, जो पेशे से किसान थे. भवानी 14 जुलाई 1970 को सेना की गढ़वाल राइफल्स में शामिल हुए और 1971 में 5 गढ़वाल राइफल्स से शुरुआत की. 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने पहली लड़ाई लड़ी. उसके बाद उन्हें 9 गढ़वाल राइफल्स में तैनात किया गया. भवानी दत्त जोशी के अदम्य साहस का परिचय देते हुए कई दुश्मनों को मार गिराया.उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च शांतिकाल वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया.
ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ में हुए थे शहीद
आर्मी बोर्ड में लिखी जानकारी के अनुसार, 5/6 जून 1984 की रात को ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ के दौरान भवानी दत्त जोशी की कंपनी को एक इमारत के एक महत्वपूर्ण परिसर में पैर जमाने की जिम्मेदारी दी गई थी. आतंकियों ने इमारत परिसर को भारी किलेबंद किया हुआ था.बिल्डिंग के गेट को आतंकियों ने बन्द करकेरुकावटें लगा रखी थीं. जैसे ही गेट में सुराख बनाया गया, उसमें से काफी भारी मात्रा में गोलियों की बौछार नायक भवानी दत्त जोशी के प्लाटून पर आईं, जिससे उनका आगे बढ़ना मुश्किल हो गया. नायक भवानी दत्त जोशी गोलियों की बौछारों की परवाह किए बिना इस काम को अन्जाम देने के लिए आगे बढ़ गए. वह अपने सेक्शन का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़े और एक आतंकवादी को उन्होंने मार गिराया और दूसरे को अपनी बैनट का शिकार बनाया. इस तरह से उन्होंने अपने प्लाटून के आगे बढ़ने के लिए रास्ता बनाया. इस दौरान नायक भवानी दत्त जोशी घायल होने के बावजूद अपने प्लाटून को फायर सपोर्ट देते रहे और एक और आतंकवादी को ढेर कर दिया, जो छुपकर प्लाटून के ऊपर गोलियां बरसा रहा था. इस काम को अंजाम देते हुए नायक भवानी दत्त जोशी ने गोलियों की बौछार अपने ऊपर ले ली और वीरगति को प्राप्त हो गए. लेकिन उनके साहस के कारण ही उनकी कम्पनी उस बिल्डिंग कॉम्पलेक्स पर कब्जा करने में सफल रही.उनके अदम्य साहस, आत्म-बलिदान और वीरता के लिए भवानी दत्त जोशी को मरणोपरांत सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया.
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FIRST PUBLISHED : June 10, 2023, 08:54 IST