सोनिया मिश्रा/रुद्रप्रयाग.उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है और यहां की धरती को स्वर्ग तुल्य माना जाता है. इस स्वर्ग भूमि में कई मंदिर हैं, जिनकी अपनी अपनी मान्यता है और कई मंदिरों का वर्णन पुराणों तक में है. इन्हीं में से एक है रुद्रप्रयाग जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर, जिसे कोटेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि सच्चे मन से यहां यदि कुछ मांगा जाए, तो निश्चित रूप से मनोकामना पूरी होती है. यही कारण है कि न सिर्फ सावन के महीने बल्कि ज्यादातर समय मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
कोटेश्वर महादेव मंदिर के महंत सचिदानंद गिरी मंदिर के महत्व के विषय में बताते हैं कि कोटेश्वर महादेव मंदिर में निसंतान दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा को लेकर भी दूर दूर से पहुंचते हैं. मंदिर के पास ही कोटेश्वर में चट्टान पर 15-16 फीट लंबी एवं 2-6 फीट ऊंची प्राकृतिक गुफा है, जिसमें कई शिवलिंग विद्यमान हैं. उन्होंने बताया कि कोटेश्वर महादेव मंदिर के बारे में यह माना जाता है कि भगवान शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए इस मंदिर के पास मौजूद गुफा में रहकर कुछ समय बिताया था. भस्मासुर ने भोलेनाथ की आराधना करके यह वरदान प्राप्त किया था कि जिसके सिर पर भी वो हाथ रख देगा, वो उसी क्षण भस्म हो जायेगा. इस वरदान को आजमाने के लिए उसने भगवान शिव को ही चुना. फिर क्या था, शिवजी आगे-आगे और भस्मासुर उनके पीछे-पीछे. उन्होंने आगे कहा कि जो भी व्यक्ति 7 दिन और 7 रात भगवान शिव की यहां सच्चे मन से उपासना करता है, उनकी बुद्धि गुरु बृहस्पति के समान तेज हो जाती है और भगवान शिव उनके ज्ञान में बढ़ोतरी करते हैं.
स्कंद पुराण के केदारखंड में है मंदिर का वर्णन
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भस्मासुर से बचने के लिए शिवजी ने कोटेश्वर महादेव मंदिर के पास स्थित इस गुफा में रहकर कुछ समय बिताया था. बाद में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके भस्मासुर का संहार करते हुए भोलेनाथ की मदद की थी. लोगों का यह भी मानना है कि कौरवों की मृत्यु के बाद जब पांडव मुक्ति का वरदान मांगने के लिए भगवान शिव को खोज रहे थे, तो भगवान शिव इसी गुफा में ध्यानावस्था में रहे थे. मंदिर के महंत सचिदानंद गिरी ने बताया कि कोटेश्वर महादेव का मंदिर बहुत प्राचीन है, जिसका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखण्ड में स्पष्ट रूप से किया गया है.
कैसे पहुंचे?
यहां पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले ऋषिकेश से बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर आते हुए रुद्रप्रयाग पहुंचना होगा और रुद्रप्रयाग से बेलनी पुल से होते हुए मंदिर पहुंचना होगा. साथ ही हेली सेवा और ट्रेन सेवा अभी यहां उपलब्ध नहीं है.
(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. NEWS18 LOCAL किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)
.
Tags: Chamoli News, News in hindi, Uttarakhand news
FIRST PUBLISHED : June 08, 2023, 12:36 IST