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Congress President Election: दोहराया जाएगा 25 साल पुराना इतिहास, इस बार अध्यक्ष पद के लिए होंगे कई दावेदार

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कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनावों में एक बार फिर से 25 साल पुराना इतिहास दोहराया जा सकता है। हालात और राजनीतिक माहौल तो कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं। कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनावों में इस बार एक से ज्यादा पर्चे भरे जा सकते हैं। चर्चा इस बात की है कि ऐसा कांग्रेस में नाराज़ नेताओं के एक धड़े की ओर से किया जाएगा। इसे लेकर तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा ने कांग्रेस के भीतर बहुत बड़ी सेंध लगा दी है। अगर सब कुछ योजना मुताबिक ही रहा तो आने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनावों में मुकाबला रोमांचक हो सकता है।

कुछ नेता केवल विरोध दर्ज कराने के लिए उतरेंगे मैदान में

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हो चुकी है, और आगे के लिए पूरा मसौदा तैयार कर लिया गया है। जिस तरीके से कांग्रेस पार्टी में आला कमान पर आरोप लगाकर नेताओं के छोड़ने का सिलसिला चला है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि गांधी परिवार से कोई भी प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं होगा। अब सवाल यही उठता है कि अगर गांधी परिवार से कोई चुनाव मैदान में नहीं होगा, तो आखिर कांग्रेस की ओर से चुनाव में प्रत्याशी कौन होगा। चर्चा है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रत्याशी बनाए जा सकते हैं या फिर युवा नेतृत्व की तलाश में सचिन पायलट पर भी पार्टी दांव लगा सकती है। इसके अलावा दक्षिण भारत के कुछ नेताओं जिसमें केरल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष समेत कर्नाटक के भी कुछ नेताओं के नाम के अध्यक्ष पद के लिए चल रहे हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि इन सबके अलावा चर्चा इस बात की भी जोरों पर हैं कि कई और नेता पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी ठोक सकते हैं।

सूत्रों का कहना है कि जो लोग कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी करने की तैयारी में हैं, वह कांग्रेस के नाराज ग्रुप के नेताओं में शामिल बताए जाते हैं। कांग्रेस से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं क्योंकि पार्टी में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत ही चुनाव की बात की जा रही है, इसलिए नाराज नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका भी नहीं जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव लड़ने वालों में दक्षिण भारत से भी कुछ नाम हैं, जबकि उत्तरी राज्यों के भी कई नेता चुनाव में महज प्रोटेस्ट दर्ज कराने के लिहाज से ही उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इन सब को लेकर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि नामांकन तो कोई भी करा सकता है। लेकिन क्या मतदान की स्थिति आएगी या नहीं यह देखना महत्वपूर्ण होगा। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि सबसे बड़ा चैलेंज तो यही है कि अगर कोई नेता नामांकन कराता है, तो मतदान वाले दिन तक चुनावी मैदान में डटे रहे।

1997 में कई दावेदारों ने भरा था पर्चा

दरअसल आज से 25 साल पहले 1997 में कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए एक साथ कई दावेदारों ने चुनावी मैदान में ताल ठोक दी थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे आरएन चहल कहते हैं कि कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे राजेश पायलट ने पार्टी मुख्य रूप से विरोध शुरू कर दिया था और 1997 में अध्यक्ष पद की दावेदारी कर दी थी। उस वक्त सीताराम केसरी, राजेश पायलट और शरद पवार के बीच चुनाव हुआ। लेकिन कांग्रेस का एक बड़ा तबका सीताराम केसरी के साथ और गांधी परिवार भी केसरी के साथ ही था। नतीजतन सीताराम केसरी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे। चहल कहते हैं कि ठीक तीन साल बाद फिर सन 2000 में कांग्रेस के पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ने पार्टी में बगावत कर कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनावी मैदान में दावेदारी ठोक दी। यह सीधा चुनाव सोनिया गांधी के खिलाफ था। सोनिया गांधी और जितेंद्र प्रसाद के बीच हुए सीधे चुनाव में सोनिया गांधी की जीत हुई।

कांग्रेस से जुड़े वरिष्ठ नेताओं का आरोप है कि गुलाम नबी आजाद ने पार्टी तो छोड़ दी है, लेकिन उनके साथ के कई भरोसेमंद नेता अभी भी कांग्रेस पार्टी में बने हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि यह नेता गुलाम नबी आजाद के साथ नई पार्टी की तैयारी भी कर रहे हैं और कांग्रेस में रहकर पार्टी को तोड़ने का भी काम कर रहे हैं। पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता का कहना है कि ऐसे नेताओं को हर कोई जानता है। उनका कहना है कि कांग्रेस में लोकतांत्रिक तरीके से सारी व्यवस्थाएं चलती हैं। इसलिए कांग्रेस पार्टी का कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन ऐसे नेताओं पर नजर जरूर रखी जा रही है जो पार्टी के भीतर रहकर पार्टी को ही नुकसान करने की योजना बना रहे हैं।

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कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनावों में एक बार फिर से 25 साल पुराना इतिहास दोहराया जा सकता है। हालात और राजनीतिक माहौल तो कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं। कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनावों में इस बार एक से ज्यादा पर्चे भरे जा सकते हैं। चर्चा इस बात की है कि ऐसा कांग्रेस में नाराज़ नेताओं के एक धड़े की ओर से किया जाएगा। इसे लेकर तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा ने कांग्रेस के भीतर बहुत बड़ी सेंध लगा दी है। अगर सब कुछ योजना मुताबिक ही रहा तो आने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनावों में मुकाबला रोमांचक हो सकता है।

कुछ नेता केवल विरोध दर्ज कराने के लिए उतरेंगे मैदान में

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हो चुकी है, और आगे के लिए पूरा मसौदा तैयार कर लिया गया है। जिस तरीके से कांग्रेस पार्टी में आला कमान पर आरोप लगाकर नेताओं के छोड़ने का सिलसिला चला है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि गांधी परिवार से कोई भी प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं होगा। अब सवाल यही उठता है कि अगर गांधी परिवार से कोई चुनाव मैदान में नहीं होगा, तो आखिर कांग्रेस की ओर से चुनाव में प्रत्याशी कौन होगा। चर्चा है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रत्याशी बनाए जा सकते हैं या फिर युवा नेतृत्व की तलाश में सचिन पायलट पर भी पार्टी दांव लगा सकती है। इसके अलावा दक्षिण भारत के कुछ नेताओं जिसमें केरल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष समेत कर्नाटक के भी कुछ नेताओं के नाम के अध्यक्ष पद के लिए चल रहे हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि इन सबके अलावा चर्चा इस बात की भी जोरों पर हैं कि कई और नेता पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी ठोक सकते हैं।

सूत्रों का कहना है कि जो लोग कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी करने की तैयारी में हैं, वह कांग्रेस के नाराज ग्रुप के नेताओं में शामिल बताए जाते हैं। कांग्रेस से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं क्योंकि पार्टी में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत ही चुनाव की बात की जा रही है, इसलिए नाराज नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका भी नहीं जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव लड़ने वालों में दक्षिण भारत से भी कुछ नाम हैं, जबकि उत्तरी राज्यों के भी कई नेता चुनाव में महज प्रोटेस्ट दर्ज कराने के लिहाज से ही उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इन सब को लेकर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि नामांकन तो कोई भी करा सकता है। लेकिन क्या मतदान की स्थिति आएगी या नहीं यह देखना महत्वपूर्ण होगा। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि सबसे बड़ा चैलेंज तो यही है कि अगर कोई नेता नामांकन कराता है, तो मतदान वाले दिन तक चुनावी मैदान में डटे रहे।

1997 में कई दावेदारों ने भरा था पर्चा

दरअसल आज से 25 साल पहले 1997 में कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए एक साथ कई दावेदारों ने चुनावी मैदान में ताल ठोक दी थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे आरएन चहल कहते हैं कि कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे राजेश पायलट ने पार्टी मुख्य रूप से विरोध शुरू कर दिया था और 1997 में अध्यक्ष पद की दावेदारी कर दी थी। उस वक्त सीताराम केसरी, राजेश पायलट और शरद पवार के बीच चुनाव हुआ। लेकिन कांग्रेस का एक बड़ा तबका सीताराम केसरी के साथ और गांधी परिवार भी केसरी के साथ ही था। नतीजतन सीताराम केसरी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे। चहल कहते हैं कि ठीक तीन साल बाद फिर सन 2000 में कांग्रेस के पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ने पार्टी में बगावत कर कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनावी मैदान में दावेदारी ठोक दी। यह सीधा चुनाव सोनिया गांधी के खिलाफ था। सोनिया गांधी और जितेंद्र प्रसाद के बीच हुए सीधे चुनाव में सोनिया गांधी की जीत हुई।

कांग्रेस से जुड़े वरिष्ठ नेताओं का आरोप है कि गुलाम नबी आजाद ने पार्टी तो छोड़ दी है, लेकिन उनके साथ के कई भरोसेमंद नेता अभी भी कांग्रेस पार्टी में बने हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि यह नेता गुलाम नबी आजाद के साथ नई पार्टी की तैयारी भी कर रहे हैं और कांग्रेस में रहकर पार्टी को तोड़ने का भी काम कर रहे हैं। पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता का कहना है कि ऐसे नेताओं को हर कोई जानता है। उनका कहना है कि कांग्रेस में लोकतांत्रिक तरीके से सारी व्यवस्थाएं चलती हैं। इसलिए कांग्रेस पार्टी का कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन ऐसे नेताओं पर नजर जरूर रखी जा रही है जो पार्टी के भीतर रहकर पार्टी को ही नुकसान करने की योजना बना रहे हैं।

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