ए.मलिक
जयपुर. एक बेहद मुकम्मल शेर के अल्फाजों में थोड़ी हेर-फेर की गुस्ताखी करें तो यूं कह सकते हैं- ‘कुछ तो कमजोरियां रहीं होंगी, यूं ही कोई सीएम की कुर्सी से दूर नहीं होता…’ करीब साढ़े चार साल पहले कांग्रेस को हताशा से निकालकर सत्तारूढ़ करने में अहम भूमिका निभाने वाले सचिन पायलट बार-बार सीएम की कुर्सी के पास पहुंचते लगते हैं, लेकिन फिर कोई ‘जादूगरी’ उन्हें सियासत की बिसात पर करारी मात देकर सीएम की कुर्सी से दूर कर देती है.
राजस्थान में इस चुनावी साल में सचिन के समर्थकों को आखिरी उम्मीद बची है कि शायद आलाकमान कांग्रेस की सरकार को रिपीट करने के अहम उद्देश्य से सीएम फेस बदल दे. हालांकि इसकी उम्मीद कम है और इसके ये सात मुख्य कारक हैं. आधी वजह उनकी एरोगेंसी भी है, जिसमें वे कमी ला रहे हैं.
1.विधायकों का संख्याबल सचिन के साथ नहीं
इसकी वजह भी हैं. ऊर्जावान, परिश्रमी और युवा सचिन में खूबियां हैं, लेकिन उनकी कुछ कमजोरियां भी हैं, जो उनके राजयोग के बार-बार आड़े आ रही हैं. यही वजह है कि सचिन चाहते हुए भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. यदि इसकी पड़ताल करें तो पहली कमजोरी तो यही नजर आती है कि विधायकों का संख्याबल सचिन पायलट के पक्ष में नहीं है. कोरोनाकाल में जब उन्होंने बगावत की थी, तब भी वे खुले तौर पर करीब 20 विधायकों का ही समर्थन जुटा पाए थे.
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2.बगावत से दिल्ली-दरबार के विश्वास में कमी
कोरोनाकाल में सचिन पायलट ने सियासी गणित को जोड़-भाग किए बिना आधी-अधूरी तैयारी के साथ ही बगावत कर दी थी. इसी कमजोरी का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. सचिन की चाल के ‘ओपन’ होने ही गहलोत ने सियासी बाजी में न सिर्फ अपने मोहरे फिट कर दिए, बल्कि दूसरे दलों (बीएसपी, बीटीपी) के एमएलए के साथ ही निर्दलीय विधायकों को भी अपने पाले में कर लिया. सियासी अनुभव की कमी के चलते सचिन न सिर्फ कमजोर खिलाड़ी साबित हुए, बल्कि दिल्ली-दरबार के बड़े नेताओं का भरोसा भी खो बैठे. तभी से गहलोत ने उन्हें ‘गद्दार’ नाम दे दिया.
3.सोनिया से ज्यादा प्रियंका से सही समीकरण
दरअसल, युवा सचिन पायलट की शुरू से ही युवा तुर्क राहुल-प्रियंका से ज्यादा करीबी रही है, जबकि अलग सियासत करने वाले गहलोत अपनी पीढ़ी की सोनिया गांधी के साथ ही राहुल गांधी के भी करीबी बने रहे. 2018 के चुनाव के बाद जब सीएम बनाने की बारी आई तो सोनिया ने अनुभवी गहलोत और मध्यप्रदेश में कमलनाथ को चुना. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी गहलोत ही सोनिया की पहली पसंद थे, लेकिन वे चतुराई से कन्नी काट गए. दूसरी ओर प्रियंका गांधी ने ही सीएम बनने के बाद गहलोत-पायलट का विवाद बढ़ा तो सचिन के समर्थकों को मंत्रिमंडल में शामिल कराया. पिछले साल सितंबर में सचिन के पक्ष में एक लाइन का प्रस्ताव लाने में भी राहुल-प्रियंका की ही ज्यादा भूमिका थी. सोनिया गांधी को पूरी तरह न साध पाना सचिन पायलट की कमजोरी रही.
4. राज्य के जातीय समीकरण भी सचिन के पक्ष में नहीं
सचिन पायलट गुर्जर बहुल टोंक सीट से जीतकर ही विधानसभा पहुंचे हैं. प्रदेश में गुर्जर मतदाताओं की संख्या करीब 6 फीसदी है. गुर्जर वोटर राज्य की सिर्फ 35-40 फीसदी सीटों पर ही असर रखते हैं, जबकि जाटों और राजपूतों का असर ज्यादा सीटों पर होने के कारण उनके विधायक ज्यादा जीतकर आते हैं. हालांकि पायलट के समर्थकों का वाजिब तर्क है कि सीएम गहलोत जिस जाति से आते हैं, उसका प्रतिनिधित्व तो गुर्जरों की तुलना में नगण्य ही है. लेकिन गहलोत जातिगत कम संख्याबल को अपने राजनीतिक अनुभव से पूरा कर लेते हैं. जातिगत समीकरणों को साधने में पायलट को अभी वक्त लगेगा.
5.आलाकमान अब नहीं चाहता पंजाब जैसे हालात
राजस्थान में विधानसभा चुनाव इसी साल के अंत में होने हैं. अब चुनावों में काफी कम समय बचा है. इसलिए भी पायलट कैंप की सीएम बदलने की मांग ठंडे बस्ते में जाती दिखाई दे रही है. दरअसल, पार्टी आलाकमान चुनावी साल में पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन का खामियाजा भुगत चुका है. इसलिए दिल्ली के नेता नहीं चाहते कि राजस्थान में पंजाब की पुनरावृत्ति हो. यहां पंजाब जैसे हालात न बनें, इसलिए सीएम गहलोत अपना कार्यकाल पूरा करेंगे. जब गहलोत को हटाने का आलाकमान ने मन बनाया तो गहलोत के मास्टर स्ट्रोक के समक्ष सचिन ही नहीं दिल्ली के नेताओं तक को मात मिली.
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6. पार्टी के सभी धड़ों पर मजबूत पकड़ नहीं
सचिन पायलट की खासियत है कि वो ऊर्जावान हैं और युवा पीढ़ी में खासे लोकप्रिय हैं. लेकिन यह खूबी तब कमजोरी बन जाती है, जबकि वो पुरानी पीढ़ी के दमदार कांग्रेस नेताओं से नजदीकी गठजोड़ नहीं बना पाते. वह चाहे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष हों या फिर कांग्रेस सरकार में रहे पूर्व मंत्री. खास बात यह भी है कि कांग्रेस के ऐसे पुराने कद्दावर नेता, जो भले ही पूरे मन से गहलोत के साथ न हों, वो भी सचिन के समर्थन में नजर नहीं आते. सचिन इसे समझकर पिछले कुछ समय से वरिष्ठ और पुराने कांग्रेसी नेताओं से मेलमिलाप बढ़ा रहे हैं, लेकिन इसका फायदा उन्हें अगले चुनाव में ही मिल सकता है.
7. सूर्य और शनि की सचिन के सीएम बनने में बाधा
और अंत में गहलोत-पायलट की कुंडलियों को भी देख लेते हैं. ज्योतिषियों की नजर में गहलोत की कुंडली में बृहस्पति और चंद्रमा का एक योग है, जिसे गजकेसरी कहते हैं. इस गजकेसरी योग से गहलोत का राजपक्ष फिलहाल टूट नहीं सकता. दूसरी ओर सचिन पायलट की कुंडली में अभी गजकेसरी योग आठवें घर में है, जो ज्योतिषीय गणना में अच्छा नहीं माना जाता. बृहस्पति का जो योग बना है वह शत्रु राशि के साथ बना है. सूर्य और शनि उनके मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं. ग्रहों का प्रभाव नहीं बदला तो अभी राजस्थान के सीएम गहलोत ही बने रहेंगे.
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FIRST PUBLISHED : March 31, 2023, 06:29 IST
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