सुप्रीम कोर्ट
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सशस्त्र बल व्यभिचार(एडल्टरी) के लिए अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले वर्ष 2018 के ऐतिहासिक फैसले को स्पष्ट करते हुए व्यवस्था दी कि सशस्त्र बल व्यभिचार के लिए अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।
जस्टिस के एम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रविकुमार की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि उसका 2018 का फैसला सशस्त्र बल अधिनियमों के प्रावधानों से संबंधित नहीं था। शीर्ष अदालत ने एनआरआई जोसेफ शाइन की याचिका पर 2018 में व्यभिचार के अपराध से निपटने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा- 497 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।
पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा मंगलवार का आदेश केंद्र की ओर से पेश हुई एडिशनल सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान की मांग पर की गई। केंद्र की ओर से 2018 के फैसले के स्पष्टीकरण की मांग की गई थी। रक्षा मंत्रालय ने 27 सितंबर, 2018 के फैसले से सशस्त्र बलों को छूट देने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था। मंत्रालय के आवेदन में कहा गया था कि यह उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा बन सकता है जो इस तरह के कार्यों में लिप्त हैं और सेवाओं के भीतर ‘अस्थिरता’ पैदा कर सकते हैं।
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