राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते प्रदूषण के चलते सांस के साथ दिल के मरीजों की समस्याएं बढ़ने लगी हैं। ज्यादातर मरीज लगातार खांस रहे हैं। इसके अलावा सांस में तकलीफ, बिना इंफेक्शन और बुखार के बावजूद कमजोरी महसूस हो रही हैं। कुछ ऐसे मरीज भी हैं, जिन्हें पहले कभी कोई सांस की बीमारी नहीं थी और वे गले में खराश, नाक बहना, सीने में जकड़न, सांस लेने में कठिनाई और घरघराहट (अस्थमा के रोगी की तरह) की शिकायत कर रहे हैं। एंटीबायोटिक्स और कफ सिरप लेने के बाद भी इन रोगियों में सुधार नहीं हो रहा। इस कारण अस्पतालों में ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
इस संबंध में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली में पल्मोनोलॉजी के पूर्व विभागप्रमुख प्रोफेसर डॉ. जी सी खिलनानी ने बताया कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के साथ ही मरीजों में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इनमें एंटीबायोटिक्स और कफ सिरप से भी सुधार नहीं आ रहा और इनहेलर और कभी-कभी नेबुलाइजेशन तक देना पड़ रहा है।
वायु प्रदूषण मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। साथ ही ये दिल के दौरे, स्ट्रोक (लकवा) और कैंसर के लिए भी कारण बनता है। प्रदूषण के कारण नाक, गले, आंख या त्वचा में जलन जैसी परेशानी होती है। साथ ही सिर दर्द, चक्कर आना और जी मिचलाना जैसे कारण बनते हैं। इसके अलावा सांस की बीमारी, अस्थमा का बढ़ना, न्यूमोनिया, फेफड़ों का कैंसर, हर्ड अटैक व ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण दिखाई देते हैं। इससे बचने के लिए कोशिश करनी चाहिए कि प्रदूषण वाले क्षेत्र में न जाएं। मास्क का प्रयोग करें।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में उपायुक्त डॉ. सुशील विमल ने कहा कि प्रदूषण से बचने के लिए विटामिन-सी, तुलसी, अदरक, नींबू, मैग्नीशियम युक्त आहार, काजू, अखरोट, गुड़ और ढेर सारा पानी पीये। ये खाद्य पदार्थ वायु प्रदूषण के प्रभाव को कम करने में मदद करेगा। सुबह की सैर व व्यायाम से बचें। प्रदूषण से बचने के लिए एन 95 मास्क का उपयोग करें।
राष्ट्रीय राजधानी के प्रदूषण (पीएम 2.5) में पराली के धुएं की हिस्सेदारी रविवार को इस साल के सर्वोच्च स्तर 26 फीसदी पर पहुंच गई। इसमें खेतों में पराली जलाने के मामले बढ़ने व दिल्ली-एनसीआर तक प्रदूषण पहुंचाने में अनुकूल मौसम का बड़ा योगदान है। शनिवार को दिल्ली के वातावरण में मौजूद पीएम 2.5 में पराली की हिस्सेदारी 21 फीसदी थी।