सुंदरबन. विश्वजीत मिस्री अपने दोनों बेटों की बेरोजगारी और पैसा खत्म होने से परेशान होकर गर्मी की एक सुबह शहद की तलाश में अपने घर से घने जंगल की ओर निकल पड़े. उनकी चाह थी कि उसे बेचकर थोड़ा बहुत पैसा कमाया जा सके. लेकिन, वह वापस नहीं लौटे. दो दिन बाद उनका शव बरामद हुआ. शव पर बाघ के हमले के निशान साफतौर पर दिखाई दे रहे थे.
मिस्त्री की मौत के एक साल से अधिक समय के बाद आज भी उनकी पत्नी लक्ष्मी उन परिस्थितियों के बारे में सोचकर शोक में डूबी हैं. उन्होंने उनके 68 वर्षीय पति को मौत के मुंह में धकेल दिया. जलवायु परिवर्तन के कारण सुंदरबन में पानी खारा हो गया है. कृषि में अब पहले जैसा लाभ नहीं रह गया. समय के बदलाव के साथ संवेदनशील क्षेत्र में बाघों के रहने की जगह कम रह गई हैं और कोविड ने यहां के लोगों का रोजगार छीन लिया है.
कोरोना ने बद्तर किए हालात
लक्ष्मी कहती हैं, “मेरे पति थोड़ी और कमाई के मकसद से घने जंगल में गए थे. मेरे बेटे प्रवासी श्रमिक हैं और चेन्नई में काम करते थे. लेकिन, महामारी के दौरान जब काम नहीं रहा तो वह लौट आए. परिवार का गुजारा करना बहुत मुश्किल हो रहा था. उनके पिता बिना किसी को बताए शहद इकट्ठा करने चले गए, ताकि उसे बाजार में बेचकर थोड़ा बहुत पैसा मिल जाए.’ मिस्री की मौत के बाद लक्ष्मी (52) भी उन महिलाओं में शामिल हो गईं, जिनके पति की बाघ के हमले में जान चली गई. ऐसी महिलाओं को ‘टाइगर विडो’ कहा जाता है.
परिवार को नहीं मिला मुआवजा
लक्ष्मी ने कहा कि उनके पति बेहतर गुणवत्ता वाला कच्चा शहद इकट्ठा करने के लिए सुंदरबन के काकमारी गांव में अपने घर से निकले और प्रतिबंधित मारीचझापी जंगल में चले गए, जहां कई बाघ रहते हैं. विश्वजीत के बेटे सौमित्र मिस्त्री (24) कहते हैं, ‘ऐसा माना जाता है कि आप जंगल में जितना अंदर जाते हैं, आपको उतना ही शुद्ध शहद मिलता है.’ विश्वजीत मिस्त्री परिवार को कोई मुआवजा नहीं मिला. क्योंकि, उनकी मौत एक प्रतिबंधित जंगल में हुई थी. लिहाजा परिवार अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है.
मुश्किल से मिल रही दो वक्त की रोटी
पिछले कुछ वर्षों में बाघों के हमलों में अपने पति को खोने वाली कई महिलाओं में से एक लक्ष्मी ने कहा कि वे दिन में मुश्किल से दो वक्त के भोजन का प्रबंधन कर पाते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 54 द्वीपों वाले सुंदरबन के भारतीय हिस्से की आबादी 40 लाख है. यहां लगभग 100 बाघ रहते हैं. बाघों की अधिक संख्या होने के कारण इसे दुनियाभर में मानव-बाघ संघर्ष का केंद्र कहा जाता है. सुंदरबन का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा भारत जबकि शेष बांग्लादेश में है.
जलवायु परिवर्तन का असर
सुंदरबन में काम करने वाले एनजीओ गोरानबोस ग्राम विकास केंद्र (जीजीबीके) के निदेशक निहार रंजन राप्तन ने इस समस्या के बारे में विस्तार से बताया. राप्तन ने बताया कि जलवायु परिवर्तन बाघों के हमलों में वृद्धि का एक और कारण बन रहा है. उन्होंने कहा, “ज्यादातर यह देखा गया है कि सर्दी के दौरान बाघ आबादी वाले क्षेत्रों में प्रवेश करते हैं. अब, जलवायु परिवर्तन के कारण उनके रहने की जगह कम होती जा रही है, इसलिए इस तरह के हमले बढ़ गए हैं.”
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Tags: National News
FIRST PUBLISHED : October 31, 2022, 05:30 IST
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