एनजीटी को एक ताजा आवेदन पर फिर से दखल देना पड़ा। उसने 30 अगस्त को दिल्ली के मुख्य सचिव से नदी की वास्तविक स्थिति से जुड़ी रिपोर्ट मंगाई। साथ में, यह सफाई भी मांगी कि अथॉरिटीज के नाकाम रहने पर उनकी जिम्मेदारी तय क्यों नहीं हुई और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। ऐसे सवाल हरियाणा और यूपी सरकारों से भी किए गए। उन्हें रिपोर्ट देने के लिए दो महीने का वक्त मिला था और अगली सुनवाई के लिए 4 नवंबर की तारीख तय की गई थी।
चार ‘O’ जोन में से सिर्फ एक पर हुआ काम
प्रस्तावित परियोजना के पहले फेज में दिल्ली में यमुना के फ्लडप्लेन को अतिक्रमण मुक्त कराकर उसका सौंदर्यीकरण किया जाना था। इसके लिए उसे चार ‘O’ जोन में बांट दिया गया। इसका पहला पार्ट लोहे के पुल से गीता कॉलोनी घाट तक था, जिसका काम लगभग पूरा होने का दावा किया गया। दिल्ली पल्यूशन कंट्रोल कमिटी (डीपीसीसी) के एक अधिकारी के अनुसार, बाकी तीन जोन का काम अभी प्लानिंग स्टेज पर है। इसके अंतर्गत गीता कॉलोनी से आईटीओ, आईटीओ से निजामुद्दीन और निजामुद्दीन से कालिंदी कुंज तक के जोन शामिल हैं।
एसटीपी की डेडलाइन बार-बार बढ़ रही
यमुना के दूषित होने की प्रमुख वजह उसमें गिरने वाले नाले हैं, जिनमें शहर के सभी सीवरों की गंदगी और औद्योगिक इकाइयों का जहरीला पानी बहता है। इन नालों को यमुना में गिरने से रोकने के लिए उनके आउटलेट पर एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगने थे, लेकिन सात साल बाद भी यह काम अधर में है। इसको पूरा करने की जिम्मेदारी दिल्ली जल बोर्ड के पास है, जिसने इस बार भी डेडलाइन रिवाइज करवाई है। बोर्ड को अब इसके लिए 2024 तक का वक्त मिला है।
वकील कुश शर्मा ने कहा कि जब तक 13 नालों को यमुना में सीधे गिरने से नहीं रोका जाता, तब तक यमुना का पानी साफ नहीं हो सकता। सबसे गंदा नजफगढ़ नाला है, जिसकी 40 फीसदी गंदगी यमुना में जा रही है। स्टॉर्म वॉटर ड्रेन और नॉर्मल ड्रेन के मिक्स होने से भी समस्या बढ़ी है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में हर साल बरसात में यमुना का जलस्तर बढ़ जाता है। उस वक्त भी इन नालों के आउटलेट को बंद कर दिया जाए, तो इससे यमुना बिना किसी खर्च के कुछ हद तक साफ हो सकती है।
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