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जानिए क्या है नृसिंह भगवान के भुजा घिसने का रहस्य ?,पाप से जुड़ा है कारण

सोनिया मिश्रा/चमोली/जोशीमठ.वैसे तो पूरे भारत वर्ष में भगवान नृसिंह के कई मंदिर हैं, जहां भगवान रौद्र रूप में पूजे जाते हैं लेकिन एक उत्तराखंड की देवभूमि में बद्रीनाथ मार्ग पर भगवान नृसिंह का एक ऐसा मंदिर भी है. जहां भगवान नृसिंह शांत रूप में पूजे जाते हैं. इतना ही नहीं इस मंदिर का संबंध बद्रीनाथ धाम से भी है, जिस कारण बद्रीनाथ जाने से पहले श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने आते हैं.

उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में गंधमादन पर्वत पर भगवान नृसिंह का मंदिर है. यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां भगवान नृसिंह को शांत रूप में पूजा जाता है. मंदिर में उनकी प्रतिमा 10 इंच की है, जिसमें भगवान कमल पर विराजमान हैं.मान्यता है कि इनके दर्शनों से दुख, दर्द, शत्रु बाधा का नाश होता है. मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की बाईं भुजा बीतते वक्त के साथ घिस रही है. मान्यताओं के अनुसार, भुजा के घिसने की गति को संसार में निहित पाप से भी जोड़ा जाता है.

जानिए क्या है सनत कुमार संहिता की मान्यता
केदारखंड के सनत कुमार संहिता के अनुसार, जिस दिन भगवान नृसिंह की बाईं भुजा खंडित हो जाएगी, उस दिन विष्णु प्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर नर और नारायण पर्वत (जिन्हें जय और विजय पर्वत के नाम से भी जाना जाता है) ढहकर एक हो जाएंगे और तब बद्रीनाथ मंदिर का मार्ग सदा के लिए बंद (अगम्य) हो जाएगा. तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बद्री मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन होंगे.

नृसिंह अवतार का कारण
चमोली के जोशीमठ क्षेत्र में भगवान विष्णु नृसिंह अवतार में विराजमान हैं. नृसिंह अर्थात सिर शेर का और धड़ मनुष्य का. यह स्वरूप भगवान विष्णु का चौथा अवतार है. इसी मंदिर में भगवान नृसिंह के साथ उद्धव और कुबेर के विग्रह भी हैं. कथित तौर पर बारह हजार वर्षों से भी पुराने इस नृसिंह मंदिर की स्थापना के संदर्भ में कई मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर मूर्ति स्वयंभू यानि स्वयं प्रकट हुई थी, जिसे बाद में स्थापित किया गया था.

आदि गुरु शंकराचार्य से भी है मंदिर का नाता
नृसिंह मंदिर को लेकर दूसरी मान्यता के मुताबिक, आठवीं शताब्दी में राजतरंगिणी के अनुसार राजा ललित आदित्य मुक्तापीड़ा ने अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान नृसिंह मंदिर का निर्माण उग्र सिंह की पूजा के लिए किया था. वहीं, तीसरी मान्यता के अनुसार, आदि गुरु शंकराचार्य ने स्वयं भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की स्थापना की थी. मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की मूर्ति शालिग्राम पत्थर पर आज भी निर्मित दिखाई देती है.

(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. NEWS18 LOCAL किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)

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dp

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