भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के के नाम से मुंबई के अलग अलग संगठनों से बंटने वाले पुरस्कारों पर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। हाल ही में हुए दादा साहब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड्स को दादा साहब फाल्के पुरस्कार के रूप में प्रचारित करने के विरोध में मशहूर अंतर्राष्ट्रीय मॉडल व अभिनेत्री निकिता घाग अपना पुरस्कार वापस करने का ऐलान कर चुकी हैं। अब मशहूर कॉमेडियन व अभिनेता सुनील पाल ने भी इन पुरस्कारों को पैसे वसूलने का धंधा बताते हुए अपने निजी अनुभव ‘अमर उजाला’ के साथ साझा किए हैं। वहीं इस तरह के पुरस्कार अतीत में ग्रहण कर चुके गजेंद्र चौहान जैसे कलाकार पुरस्कार वापसी की चर्चा से ही बिदक गए। आइए देखते हैं क्या कहते हैं इस पूरे विवाद पर ये कलाकार…
सुनील पाल, हास्य कलाकार
निकिता घाग ने जो भी किया बहुत अच्छा किया। दादा साहब फाल्के के नाम पर बहुत सारे फ्रॉड अवार्ड हो रहे हैं। ऐसे अवार्ड से उनके परिवार का कुछ भी लेना देना नहीं होता है। कुछ ऐसे लोग भी दादा साहब फाल्के के नाम पर अवार्ड करते हैं जिनका बॉलीवुड से कुछ भी लेना देना है। बहुत सारे ऐसे लोगों को भी अवार्ड मिल रहा है जिनका बॉलीवुड से कोई नाता ही नहीं रहता है। ऐसे लोगों को जब अवार्ड दिया जाता है जिनको दादा साहब फाल्के के नाम की स्पेलिंग तक पता नहीं और ना ही दादा साहब कौन थे, इसके बारे में पता होता है। बहुत दुख होता है जब ऐसे लोगों को अवार्ड दिया जाता है। ऐसे अवार्ड कार्यक्रम में सेलिब्रेटी और आम आदमी को भी बुलाया जाता है। आम आदमी से 20 से 50 हजार रुपये लेते हैं और सेलिब्रेटी के हाथ से अवार्ड दिलाते हैं। मैं भी ऐसे दो तीन अवार्ड में गया हूं, मेरा बहुत ही खराब अनुभव रहा है। मेरे हिसाब से असली अवार्ड वही है जो सरकार की तरफ से दिया जाता है।
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लोगों ने मेरी बहुत आलोचना की: गजेंद्र चौहान, अभिनेता
देखिए, जिसको दादा साहब फाल्के अवार्ड लेना हो ले, जिसको ना लेना हो मत ले। अवॉर्ड मिलने के बाद यह कहना कि वापस कर देना चाहिए किसी भी कलाकार को शोभा नहीं देता है। आप उस सम्मान के लायक हैं, तभी तो आपको वह सम्मान मिला। फिल्म इंडस्ट्री में कई संस्थाएं दादा साहब फाल्के के नाम से अवार्ड कर रही हैं। जब मुझे लीजेंड दादा साहब फाल्के अवार्ड मिला तो लोगों ने मेरी बहुत आलोचना की। जब मैने सोशल मीडिया पर अवॉर्ड की फोटो पोस्ट की तो लोगों ने इस अवॉर्ड को लोगों ने सरकार के तरफ से दिए जाने वाला अवार्ड से जोड़कर देखा लेकिन लोगों ने यह ध्यान नहीं दिया कि मैने लीजेंड दादा साहब फाल्के अवार्ड लिखा था।
राज कपूर अवार्ड्स भी शुरू हों: सुधाकर शर्मा, गीतकार
कोई भी अवॉर्ड कला को प्रोत्साहित करने के लिए होता है, दूसरी बात जिनके नाम पर अवॉर्ड देते हैं, आने वाली पीढ़ी को पता तो चले कि दादा साहब फाल्के कौन थे? भारतीय सिनेमा के दादा साहब फाल्के जनक हैं। सिनेमा के क्षेत्र में उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है। मैं तो चाहता हूं राज कपूर, बी आर चोपड़ा जैसे और लोगों के भी नाम पर अवॉर्ड होने चाहिए, जिससे आज की युवा पीढ़ी को उनके बारे में पता चले और हमें भी प्रोत्साहन मिलेगा। अवॉर्ड आप की कला को आगे बढ़ाने के लिए होता है। भारत सरकार की तरह से जो दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया जाता है, वो तो इनको मिलेगा नहीं।
घर घर हो गया फाल्के अवार्ड, दिलीप सेन, संगीतकार
अब दादा साहब फाल्के अवॉर्ड घर घर हो गया है। इसमें किसी को बुरा इसलिए नहीं मानना चाहिए क्योंकि दादा साहब फाल्के पर किसी का एकाधिकार नहीं हैं। सरकार भी दादा साहब फाल्के के नाम से अवार्ड देती है और भी लोग दे रहे हैं लेकिन दादा साहब फाल्के तो नकली नहीं हैं ना। ये जरूर है कि हर तीन चार महीने में एक बार दादा साहब फाल्के के नाम से अवार्ड हो जाता है। मैं इस अवार्ड को न तो बंद करने के पक्ष में हूं और न ही शुरू करने के पक्ष में हूं। इस अवॉर्ड शो से कई लोगों के घर चलते हैं। रफी साहब के जन्मदिन और उनकी पुण्यतिथि पर बहुत सारे कार्यक्रम होते हैं। ऐसे कार्यक्रम से किसी ना किसी का तो घर चल रहा है। ऐसा सुनने में आता है कि लोग पैसे लेकर अवॉर्ड देते हैं लेकिन इस बात को मैं नहीं मानता हूं।