जुगल कलाल
डूंगरपुर. रेगिस्तान के जहाज के नाम से मशहूर ऊंट की उपयोगिता राजस्थान के डूंगरपुर में कम होती जा रही है. उपयोगिता कम होने के कारण पशुपालकों ने ऊंट से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है. राजस्थान सरकार ने ऊंटों के संरक्षण के लिए वर्ष 2014 में इसे राज्य पशु का दर्जा दिया था. लेकिन, डूंगरपुर जिले में पिछले 10 साल में ऊंटों की संख्या में लगभग 80 प्रतिशत की गिरावट आई है. यहां पहले ऊंटों की संख्या सात हज़ार से अधिक थी. लेकिन अब इनकी संख्या महज 2,670 ही रह गई है. इनमें में भी 80 फ़ीसदी ऊंट पड़ोसी राज्य गुजरात के गावों मेंं पलायन कर चुके हैं.
बता दें कि, जिले के आदिवासी इलाकों में रैबारी, रायका और घुमंतू जाति के लोग ऊंट को रखते हैं. इससे उनके परिवार का भरण पोषण होता हैं. जिले में रैबारी समाज की करीब 22 धाणियां है. इन लोगों का कहना है कि पहले के समय में ऊंट से सामान इधर से उधर पहुंचाया जाता था. लेकिन, वक्त के साथ ऊंटों की जगह वाहनों ने ले ली है. इससे ऊंट की उपयोगिता कम हो गई. इसलिए उन्होंने ऊंट रखना कम कर दिया हैं.
वहीं, यहां के अधिकांश ऊंट पालक अपना ऊंट लेकर गुजरात पलायन कर गये हैं. उसका मुख्य कारण है कि गुजरात में पर्यटन की दृष्टि से ऊंट की मांग ज़्यादा है. डूंगरपुर में ऊंट के दूध की डिमांड काफी कम है. जबकि गुजरात में ऊंट के दूध की डिमांड ज़्यादा है. इसलिए भी ऊंट पालक गुजरात की ओर पलायन कर जाते हैं.
गुजरात में पर्यटन में ऊंट की डिमांड ज़्यादा
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. दिनेशचंद्र बामनिया ने बताया कि ऊंट पालकों के गुजरात पलायन करने का मुख्य कारण है कि डूंगरपुर में ऊंट के दूध की डिमांड बहुत कम है. वहीं, गुजरात में ऊंट के दूध डिमांड अधिक है, और इसके दाम भी अधिक मिलते हैं. इसलिए ऊंट पालक अपने ऊंटों के साथ गुजरात चले जाते हैं.
उन्होंने बताया कि जिले में ऊंटों संख्या में वृद्धि के लिए विभाग और सरकार की ओर से ऊंट पालक को ऊंट रखने पर 10 हज़ार रुपये दिए जाते हैं. साथ ही, ऊंट का बच्चा होने पर विभाग की ओर से उस पर पहचान पत्र लगाया जाता है. इसके बाद, पशु पालक को 5,000 रुपये की पहली किश्त मिलती है. फिर जब ऊंट का बच्चा एक साल हो जाता है, तो पशुपालक दूसरी किश्त पांच हज़ार रुपये दी जाती है.
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Tags: Camel milk, Dungarpur news, Rajasthan government, Rajasthan news in hindi
FIRST PUBLISHED : January 31, 2023, 14:59 IST
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