इस ट्रेनिंग के लिए सभी विभागों से कर्मचारी लिए जाए हैं। वहीं दूसरी तरफ कर्मचारियों का कहना है कि इस ट्रेनिंग को इतना बोरिंग बना दिया जाता है कि नींद आना स्वाभाविक है। ट्रेनिंग का ज्यादातर हिस्सा वन-वे कम्युनिकेशन रहता है, जिसमें स्कूल के बच्चे की तरह पढ़ाई होती रहती है। यदि इस ट्रेनिंग को कुछ दिलचस्प बना दिया जाए तो यह समस्या कम होगी।
जब इस संदर्भ में अधिकारियों से बात की गई तो उनका कहना था कि इस ट्रेनिंग को कम से कम समय में पूरा करवाने की चुनौती होती है। पहली बार ट्रेनिंग विभागों के कर्मचारियों की होती है। इसलिए उन विभागों का काम भी प्रभावित होता है। इस ट्रेनिंग को यदि लंबा खींचा जाएगा तो लोगों के कामों में ही दिक्कतें आएगी। दूसरा, ट्रेनिंग को लंबा चलाने से चुनावी खर्च भी कई गुणा बढ़ेगा। कर्मचारियों की संख्या काफी अधिक होती है। उन्हें दिन के हिसाब से ट्रेनिंग के लिए भी मानदेय भी दिया जाता है। यही वजह है कि ट्रेनिंग के स्वरूप के साथ अधिक बदलाव नहीं किए जा सकते।
क्या है ट्रेनिंग और चुनावी ड्यूटी का मानदेय
अधिकारी | अमाउंट | लंच | कुल |
सेक्शन ऑफिसर | 5000 | 150 | 5150 |
मास्टर ट्रेनर | 2000 | – | 2000 |
माइक्रो ऑब्जर्वर | 1000 | – | 1000 |
बीएओ | 3000 | – | 3000 |
पोलिंग पर्सनल
प्रिसाइडिंग ऑफिसर | 1050 | 150 | 1200 |
पोलिंग ऑफिसर | 750 | 150 | 900 |
क्लास | 4 450 | 150 | 500 |
रिसेप्शन पार्टीज
रिसेप्शन सुपरवाइजर | 700 | 150 | 850 |
रिसेप्शन असिस्टेंट | 500 | 150 | 650 |
क्लास | 4 300 | 150 | 450 |
काउंटिंग पार्टीज | 700 | 150 | 850 |
काउंटिंग असिस्टेंट | 500 | 150 | 650 |
NBT नजरिया
कोई ट्रेनिंग या वर्कशॉप हो या फिर किसी विषय का क्लासरूम। अगर विषय को रोचक तरीके से नहीं बताया जाता तो नींद आ ही जाती है। कई बार ऐसा प्रतिभागी की विषय में रुचि न होने के कारण भी होता है। इसका बेहतर तरीका यही है कि संवाद एकतरफा न हो। सवाल जवाब होते रहते हैं तो सुनने वाले को सतर्क रहना पड़ता है। मोनोलॉग से बचना चाहिए क्योंकि आमतौर पर ऐसा ज्ञान बोरिंग ही होता है।
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