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Himachal Election 2022: हिमाचल में नेताओं के बगावत का भाजपा पर कितना पड़ेगा असर? जानें कांग्रेस का क्या है हाल


हिमाचल प्रदेश चुनाव 2022
– फोटो : अमर उजाला

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हिमाचल प्रदेश के 68 विधानसभा सीटों के लिए 324 उम्मीदवार मैदान में हैं। कुल 786 नामांकन पत्र दाखिल हुए थे, जिनमें 589 स्वीकार हुए हैं। 84 नामांकन पत्रों को चुनाव आयोग ने रद्द कर दिया और 113 नामांकन पत्र वापस ले लिए गए। कई उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र के एक से ज्यादा सेट दाखिल किए थे। 2017 के मुकाबले इस बार उम्मीदवारों की संख्या कम है। तब  338 उम्मीदवार चुानव मैदान में थे। यानी, इस बार से 14 ज्यादा।  

इस बार चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी ने भी जोर लगा रखा है। ऐसे में मामला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। आमतौर पर हिमाचल की सत्ता कांग्रेस और भाजपा के हाथों में ही रही है। यही कारण है कि इन दोनों पार्टियों से टिकट के उम्मीदवारों की संख्या भी कहीं अधिक थी। खासतौर से मौजूदा समय सत्ता में मौजूद भाजपा से।

कई-कई विधानसभा से पांच से 10 नेताओं ने अपनी दावेदारी ठोक दी थी। जिन्हें टिकट नहीं मिला अब वो नाराज बताए जा रहे हैं। भाजपा में ऐसे 21 और कांग्रेस में छह नेताओं ने बागी रूख अख्तियार कर लिया है। ये नेता निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं। ऐसे में आइए बताते हैं कि इसका किस पार्टी को कितना नुकसान हो सकता है? किन-किन नेताओं ने बागी रूख अपना लिया है? आइए जानते हैं…  
 
कांग्रेस के इन नेताओं ने दिखाया बागी तेवर
नामांकन की आखिरी तरीख तक कांग्रेस से 11 नेताओं ने बागी रुख अख्तियार कर रखा था। इनमें से पांच को मनाने में पार्टी सफल रही। छह बागी अभी भी चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गंगूराम मुसाफिर, दो पूर्व विधायक सुभाष मंगलेट और जगजीवन पाल समेत छह नेताओं को पार्टी ने छह साल के लिए निष्कासित कर दिया।
रविवार को पार्टी हाईकमान ने इन नेताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर ये आदेश जारी किए।  प्रदेश कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला की स्वीकृति के बाद पार्टी प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने यह कार्रवाई की है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गंगू राम मुसाफिर ने पच्छाद से कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ने को पर्चा भरा है। वहीं, सुलह के पूर्व विधायक जगजीवन पाल, चौपाल के पूर्व विधायक सुभाष मंगलेट, ठियोग से विजय पाल खाची, आनी से परस राम और जयसिंहपुर से सुशील कौल पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे हैं। इन सभी को पार्टी ने निष्कासित किया है।
सबसे ज्यादा भाजपा के बागी नेता
भाजपा में बगावत करने वालों की संख्या बहुत है। पार्टी के 21 नेता बागी होकर निर्दलीय चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। भाजपा ने सभी बागियों पर कार्रवाई करने की तैयारी कर ली है। पार्टी एक-दो दिन में इन्हें छह साल के लिए निष्कासित करने के आदेश कर सकती है।
इन नेताओं में बंजार से लड़ रहे महेश्वर सिंह के बेटे हितेश्वर, आनी से विधायक किशोरी लाल सागर, देहरा से विधायक होशियार सिंह, नालागढ़ से पूर्व विधायक केएल ठाकुर, इंदौरा से पूर्व विधायक मनोहर धीमान, किन्नौर से पूर्व विधायक तेजवंत नेगी, फतेहपुर से पूर्व सांसद कृपाल परमार, सुंदरनगर से पूर्व मंत्री रूप सिंह ठाकुर के बेटे अभिषेक ठाकुर, बिलासपुर से सुभाष शर्मा, मंडी से प्रवीण शर्मा और कुल्लू से राम सिंह शामिल हैं। इनके अलावा नाचन से ज्ञान चंद, धर्मशाला से विपिन नैहरिया, अनिल चौधरी, कांगड़ा से कुलभाष चौधरी, मनाली से महेंद्र ठाकुर, बड़सर से संजीव शर्मा, हमीरपुर से नरेश दर्जी, भोरंज से पवन कुमार, रोहडू़ से राजेेंद्र धीरटा और चंबा से इंदिरा कपूर पर कार्रवाई तय है। 
क्या नेताओं की बगावत पड़ेगी भारी?
इसे समझने के लिए हमने हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषक डॉ. महेश ठाकुर से बात की। उन्होंने कहा, ‘हर चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर उठापठक जरूर होती है। खासतौर पर उन पार्टियों के अंदर, जो सत्ता में आने का दम रखती हैं। हिमाचल प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही हुआ। यहां हमेशा कांग्रेस और भाजपा की लड़ाई रही है। ऐसे में इन्हीं दोनों पार्टियों में ज्यादा बगावत भी दिखी। भाजपा अभी राज्य और केंद्र दोनों जगह सत्ता में है। ऐसे में इस पार्टी से टिकट पाने के लिए उम्मीदवारों की लंबी लाइन थी।’

डॉ. महेश आगे कहते हैं, ‘इन बागी नेताओं को पार्टी से मनाने की काफी कोशिश की, लेकिन नहीं मानें। ऐसे में इसका असर तो जरूर पड़ेगा। अगर ये 1000 या 500 वोट भी काट लेते हैं तो भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। कई बार तो बागी प्रत्याशी ही चुनाव भी जीत जाता है। ऐसे में पार्टियों को अभी भी इन्हें मनाने की कोशिश जारी रखनी चाहिए।’

विस्तार

हिमाचल प्रदेश के 68 विधानसभा सीटों के लिए 324 उम्मीदवार मैदान में हैं। कुल 786 नामांकन पत्र दाखिल हुए थे, जिनमें 589 स्वीकार हुए हैं। 84 नामांकन पत्रों को चुनाव आयोग ने रद्द कर दिया और 113 नामांकन पत्र वापस ले लिए गए। कई उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र के एक से ज्यादा सेट दाखिल किए थे। 2017 के मुकाबले इस बार उम्मीदवारों की संख्या कम है। तब  338 उम्मीदवार चुानव मैदान में थे। यानी, इस बार से 14 ज्यादा।  

इस बार चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी ने भी जोर लगा रखा है। ऐसे में मामला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। आमतौर पर हिमाचल की सत्ता कांग्रेस और भाजपा के हाथों में ही रही है। यही कारण है कि इन दोनों पार्टियों से टिकट के उम्मीदवारों की संख्या भी कहीं अधिक थी। खासतौर से मौजूदा समय सत्ता में मौजूद भाजपा से।

कई-कई विधानसभा से पांच से 10 नेताओं ने अपनी दावेदारी ठोक दी थी। जिन्हें टिकट नहीं मिला अब वो नाराज बताए जा रहे हैं। भाजपा में ऐसे 21 और कांग्रेस में छह नेताओं ने बागी रूख अख्तियार कर लिया है। ये नेता निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं। ऐसे में आइए बताते हैं कि इसका किस पार्टी को कितना नुकसान हो सकता है? किन-किन नेताओं ने बागी रूख अपना लिया है? आइए जानते हैं…  

 

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