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Explainer: गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आखिर क्यों हो रहा है विवाद?

अहमदाबाद. गुजरात सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर कमेटी बनाने का ऐलान कर दिया है. इस ऐलान के साथ ही इसे लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गए हैं. ऐसे में यह भी समझना जरूरी है कि आखिर यूसीसी है क्या और क्यों ये जरूरी माना जाता है? देश की सारी आबादी के लिए एक आपराधिक कानून तो है, लेकिन सिविल राइट जिन्हें दीवानी अधिकार भी कहा जाता है, उसे लेकर एकरूपता नहीं है. यही कारण है कि बार-बार ये मांग उठती रही है कि देश में सभी धर्मों को मानने वाले सभी लोगों का ‘बिना लिंग भेद’ किए हुए समान अधिकार होने चाहिए.

सबसे पहले तो ये बात समझ लेनी चाहिए कि यूसीसी मुख्य रूप से पांच चीजों से जुड़ा हुआ है. विवाह, संबंध विच्छेद यानी ‘तलाक’,  उत्तराधिकार, विरासत और दत्तक ग्रहण ‘गोद लेना’ के अधिकारों की बात इसमें की जाती है. एक बहुत ही महत्वपूर्ण और ध्यान रखने वाली बात है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में साफ कहा गया था कि राज्य भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी शाह बानो के मामले से लेकर अब तक कई बार यूसीसी बनाने की ओर बात कह चुका है. ये बात सही है संविधान का अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन ये भी याद रखना चाहिए कि संविधान का अनुच्छेद 14,15,21 समानता का अधिकार भी देता है और जीने का अधिकार भी.

समान नागरिक संहिता के विरोध में दलील दी जाती है कि ये धार्मिक स्वतंत्रता में बाधा बनेगी, लेकिन ये पूरी तरह से सच नहीं है. दरअसल, इस तरह की भ्रांति फैलाई जाती है कि सबके लिए एक तरह से विवाह करना, तलाक प्रक्रिया कर दी जाएगी. ऐसा बिल्कुल नहीं है. यूसीसी होने के बाद भी किसी धर्म को मानने वाले किसी भी विधि के मुताबिक यानी अपने धर्म के रीति रिवाज के मुताबिक वो कर सकेंगे और संबंध विच्छेद यानी तलाक भी अपने रिवाज के मुताबिक ले सकेंगे, लेकिन एक बड़ा फर्क ये होगा कि सभी नागरिकों को शादी, निकाह के बाद उसका रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होगा. शादी या निकाह किसी भी रिवाज से हो लेकिन एक बार होने के बाद सभी के अधिकार बराबर होंगे. यानी पुरुष हो या महिला वो किसी भी धर्म को मानने वाले हों, उनके अधिकार एक समान होंगे. धर्म और कानून के बीच की रेखा का अंतर भी समझना चाहिए. धर्म किसी भी व्यक्ति का अपने ईश्वर ‘चाहे वो किसी भी रूप में हो’ के साथ या उनके बीच का रिश्ता होता है, लेकिन अगर वो दो लोगों के बीच का मामला होगा. जैसे पति या पत्नी के बीच का तो वो कानून का मामला भी बन जाता है.

एक दलील ये भी दी जाती है कि भारत विविधताओं का देश है. ऐसे भी यहां अगर समानता की बात की जाएगी तो वो ठीक नहीं होगा. ऐसे में ये समझना चाहिए कि किसी भी सभ्य समाज में धर्म या लिंग भेद के आधार पर कोई फर्क किया जाता है तो वो विविधता नहीं बल्कि भेदभाव ही कहलाएगा.

Tags: Gujarat assembly elections, Uniform Civil Code

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