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Robotic Treatment : व्यायाम करवाकर रोबोट ठीक करेगा लकवा, मरीजों की मदद के लिए एम्स ने तैयार किया एप

एम्स दिल्ली

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ब्रेन स्ट्रोक के बाद लकवाग्रस्त शरीर के अंग को फिर से नॉर्मल बनाने के लिए अब लंबे समय तक फिजियोथेरपिस्ट के चक्कर नहीं लगाने होंगे। मरीजों की समस्या को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के साथ मिलकर पांच तरह के रोबोट तैयार किए हैं।

ये रोबोट मरीजों के उक्त अंग से व्यायाम करवाकर बहुत कम समय में लगवाग्रस्त अंग का इलाज करेगा। स्ट्रोक के बाद मरीज के लगवाग्रस्त अंग का 7-8 माह तक की फिजियोथेरेपी होती है। यह काफी महंगी होती हैं और इसमें मरीज और चिकित्सक दोनों के बीच तालमेल की जरूरत होती है। वहीं इसके लिए ज्यादा जगह की जरूरत होती है। जबकि रोबोट काफी कम जगह में कृत्रिम बुद्धिमता के साथ मरीज को व्यायाम करवाता है।

इस बारे में एम्स न्यूरोसाइंस सेंटर की प्रमुख डॉ. एमवी पद्मा श्रीवास्तव ने कहा कि हम आईआईटी के साथ मिलकर मरीजों को बेहतर सुविधाएं देने का प्रयास कर रहे हैं। न्यूरोलॉजी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मरीजों की सुविधा के लिए चार तरह के रोबोट तैयार किए गए हैं। पहले रोबोट की मदद से स्ट्रोक के बाद ऊपरी अंगों के कार्य में सुधार लाया जाता है। यह कम लागत वाले एक्सोस्केलेटन और पीजोइलेक्ट्रिक हैंड ग्लव्स हैं जिन्हें विशेष रूप से डिजाइन किया गया है जो कलाई व अंगुलियों का व्यायाम करवाते हैं। 

दूसरा रोबोट शरीर के ऊपरी अंगों के पुनर्वास पर नैदानिक प्रभाव का मूल्यांकन करता है। साथ ही आभासी वास्तविकता मॉड्यूल के तहत काम करता है। वहीं तीसरे रोबोट का डिजाइन शरीर के ऊपरी अंगों के लिए किया गया है। जो हाथ के उपकरण की मदद से गैर-आक्रामक मस्तिष्क उत्तेजना तकनीकों के माध्यम से उक्त अंग को फिर से नॉर्मल करने का प्रयास करता है।

इसके अलावा एक अन्य रोबोट तैयार किया गया है। यह सभी रोबोट स्ट्रोक के मरीजों के लिए कम लागत में, हल्के व पोर्टेबल हैं। इन सभी रोबोट का परीक्षण भारतीय मरीजों के आधार पर किया गया है। एम्स ने ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए टेली-न्यूरोरिहैबिलिटेशन रिजीम गाइडेड ट्रेनिंग (मोबाइल आधारित) भी तैयार की है।

मरीजों की मदद के लिए तैयार किया एप
एम्स ने देश के दूर दराज क्षेत्रों में स्ट्रोक के मरीजों को बेहतर सुविधा देने के लिए स्मार्टफोन आधारित ‘स्ट्रोक इंडिया’ एप तैयार किया है। इस एप की मदद से जिला अस्पतालों में चिकित्सकों को न्यूरोलॉजिस्ट और फिजियोथेरेपिस्ट की सुविधा मिलेगी। इसकी मदद से बेहतर टेलीस्ट्रोक सेवाएं प्रदान की जाएंगी।

एम्स में 24 घंटे होगी डेंगू और मलेरिया की जांच
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली में एक नवंबर से डेंगू और मलेरिया की जांच 24 घंटे होगी। दिल्ली में पिछले कुछ समय से डेंगू के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। बढ़ते मामलों के बीच डेंगू के लक्षण के साथ एम्स में बड़ी संख्या में मरीज पहुंच रहे हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। ऐसे मरीजों को जल्द से जल्द उपचार देने के लिए जांच में तेजी लाने का फैसला लिया गया है। शनिवार को एम्स निदेशक ने एक आदेश दिया है जिसमें सप्ताह के सभी दिन, 24 घंटे डेंगू-मलेरिया के अलावा अन्य जांच करने को कहा गया है। इससे पहले एम्स में एमआरआई सहित अन्य जांचों को भी 24 घंटे करने का आदेश दिया जा चुका है। 

एम्स प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार, वयस्क और बाल चिकित्सा आपातकालीन विभाग में भर्ती या निगरानी में रखे गए मरीजों की जांच 1 नवंबर से 24 घंटे की जाएगी। साथ ही इन मरीजों की रिपोर्ट भी कम से कम समय में उपलब्ध कराई जाएगी। इन जांच में डेंगू सीरोलॉजी के साथ एनएस 1 एंटीजन (एलिसा), मलेरिया डायग्नोस्टिक वर्कअप (एक्रिडीन ऑरेंज और गिमेसा स्टेनिंग), मूत्र की नियमित और सूक्ष्म जांच, ब्लड, यूरिन, सीएसएफ के साथ सीएसएफ के लिए माइक्रोबायोलॉजिकल जांच शामिल हैं। 

ट्रामा में दलाल बेच रहे थे उपकरण : एम्स परिसर में निजी एजेंट व दलालों पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद भी ये नए-नए तरीके से एम्स परिसर में चिकित्सकीय उपकरण व सामान बेचने का प्रयास कर रहे हैं। एम्स के सुरक्षा अधिकारी ने एम्स ट्रामा सेंटर में ऐसे पांच लोगों को पकड़ा है तो हड्डी रोग में इस्तेमाल होने वाले चिकित्सा सामान को महंगे दाम पर बेचने का प्रयास कर रहे थे। इन सभी के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया है। इससे पहले भी एम्स    परिसर में निजी दलालों को पकड़ा जा चुका है।

एम्स में खत्म हो जाएगी अवैध पार्किंग की भीड़
एम्स परिसर में अवैध पार्किंग की समस्या को खत्म करने के लिए एम्स निदेशक ने 1 अप्रैल 2023 से सभी पार्किंग स्ट्रीकर को खत्म कर दिया है। इनकी जगह पर केवल आरएफआईडी स्ट्रीकर ही जारी किए जाएंगे। 

निदेशक ने 31 जनवरी तक सभी गेट पर आरएफआईडी गेट लगाने का निर्देश दिया है। इस फैसले के बाद एम्स परिसर में अवैध पार्किंग की समस्या खत्म हो जाएगी। वहीं मरीजों की सुविधा के लिए शटल सेवाओं को बढ़ाया जाएगा। इस सेवा में गर्भवती महिला, बुजुर्ग, दिव्यांग और जरूरतमंद लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही 50 नए शटल भी लाए जाएंगे, जिनकी मदद से एम्स परिसर में आना-जाना आसान हो जाएगा।

अब तक परिसर में आवागमन की सुविधा न होने से मरीज और उनके तीमारदारों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। नई सेवा शुरू होने से उनकी आवागमन की परेशानी खत्म हो जाएगी। उन्हें बेवजह की रोकटोक से निजात मिलेगी। 

एम्स इमरजेंसी में पता चल जाएगा किस अस्पताल में खाली है बेड
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के इमरजेंसी में आने वाले स्थिर मरीजों को रेफर होने के बाद सड़कों पर भटकना नहीं होगा। रेफर होने के साथ ही उन्हें पता होगा कि एम्स से किस अस्पताल में जाना है। इस मामले में शनिवार को एम्स निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने शनिवार को दिल्ली के 15 अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षकों के साथ बैठक कर रेफरल नीति तैयार की। 

इस नीति में तय किया गया कि दिल्ली के प्रमुख 15 अस्पताल अपने यहां खाली बेड की जानकारी एम्स इमरजेंसी में देंगे। इसकी सूचना इमरजेंसी में लगे डेशबर्ड से मरीजों को मिल जाएगी। वहीं एम्स से मरीज के निकलते ही उक्त अस्पताल को भी सूचना पहुंच जाएगी। बैठक में तय हुआ कि सभी अस्पताल अपनी इमरजेंसी में नोडल अधिकारी रखेंगे जो आपस में एक दूसरे से जुड़े रहेंगे। ये नोडल अधिकारी मरीजों को रेफर करने से पहले आपस में बात कर सूचना साझा कर लेंगे जिससे मरीज को परेशानी न हो। 

अभी तक छोटे अस्पतालों से तो गंभीर मरीजों को बड़े अस्पतालों में रेफर किया जाता है लेकिन बड़े अस्पताल भी स्थिर मरीजों को छोटे अस्पतालों में  रेफर करेंगे। बैठक के दौरान एम्स ने दूसरे अस्पतालों को अपना इमरजेंसी का ट्रेकर भी दिखाया। इसमें डॉक्टर इमरजेंसी में मौजूद मरीज की कौन सी जांच हो चुकी हैं और कौन सी नहीं, ये किसी भी समय दूर से ही देख सकता है। संबधित विभाग या व्यक्ति को जांच के लिए उसी समय वहीं से अलर्ट भी भेज सकता है। 

एम्स देगा प्रशिक्षण 
एम्स प्रशासन ने कहा कि जरूरत पड़ने पर एम्स अन्य अस्पतालों के डॉक्टर व स्टाफ को प्रशिक्षण भी देगा। एक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक ने कहा कि उनके पास जगह है लेकिन संसाधन और लोग नहीं है तो एम्स के निदेशक ने कहा कि सभी मरीज हमारे हैं। हम जरूरत के हिसाब से प्रशिक्षण के अलावा अपने संसाधन भी दूसरे अस्पतालों को साझा कर सकते हैं। इस बैठक में मौजूद सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर बीएल शेरवाल ने भी सभी प्रस्तावों पर सहमति जताई।
 

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ब्रेन स्ट्रोक के बाद लकवाग्रस्त शरीर के अंग को फिर से नॉर्मल बनाने के लिए अब लंबे समय तक फिजियोथेरपिस्ट के चक्कर नहीं लगाने होंगे। मरीजों की समस्या को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के साथ मिलकर पांच तरह के रोबोट तैयार किए हैं।

ये रोबोट मरीजों के उक्त अंग से व्यायाम करवाकर बहुत कम समय में लगवाग्रस्त अंग का इलाज करेगा। स्ट्रोक के बाद मरीज के लगवाग्रस्त अंग का 7-8 माह तक की फिजियोथेरेपी होती है। यह काफी महंगी होती हैं और इसमें मरीज और चिकित्सक दोनों के बीच तालमेल की जरूरत होती है। वहीं इसके लिए ज्यादा जगह की जरूरत होती है। जबकि रोबोट काफी कम जगह में कृत्रिम बुद्धिमता के साथ मरीज को व्यायाम करवाता है।

इस बारे में एम्स न्यूरोसाइंस सेंटर की प्रमुख डॉ. एमवी पद्मा श्रीवास्तव ने कहा कि हम आईआईटी के साथ मिलकर मरीजों को बेहतर सुविधाएं देने का प्रयास कर रहे हैं। न्यूरोलॉजी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मरीजों की सुविधा के लिए चार तरह के रोबोट तैयार किए गए हैं। पहले रोबोट की मदद से स्ट्रोक के बाद ऊपरी अंगों के कार्य में सुधार लाया जाता है। यह कम लागत वाले एक्सोस्केलेटन और पीजोइलेक्ट्रिक हैंड ग्लव्स हैं जिन्हें विशेष रूप से डिजाइन किया गया है जो कलाई व अंगुलियों का व्यायाम करवाते हैं। 

दूसरा रोबोट शरीर के ऊपरी अंगों के पुनर्वास पर नैदानिक प्रभाव का मूल्यांकन करता है। साथ ही आभासी वास्तविकता मॉड्यूल के तहत काम करता है। वहीं तीसरे रोबोट का डिजाइन शरीर के ऊपरी अंगों के लिए किया गया है। जो हाथ के उपकरण की मदद से गैर-आक्रामक मस्तिष्क उत्तेजना तकनीकों के माध्यम से उक्त अंग को फिर से नॉर्मल करने का प्रयास करता है।

इसके अलावा एक अन्य रोबोट तैयार किया गया है। यह सभी रोबोट स्ट्रोक के मरीजों के लिए कम लागत में, हल्के व पोर्टेबल हैं। इन सभी रोबोट का परीक्षण भारतीय मरीजों के आधार पर किया गया है। एम्स ने ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए टेली-न्यूरोरिहैबिलिटेशन रिजीम गाइडेड ट्रेनिंग (मोबाइल आधारित) भी तैयार की है।

मरीजों की मदद के लिए तैयार किया एप

एम्स ने देश के दूर दराज क्षेत्रों में स्ट्रोक के मरीजों को बेहतर सुविधा देने के लिए स्मार्टफोन आधारित ‘स्ट्रोक इंडिया’ एप तैयार किया है। इस एप की मदद से जिला अस्पतालों में चिकित्सकों को न्यूरोलॉजिस्ट और फिजियोथेरेपिस्ट की सुविधा मिलेगी। इसकी मदद से बेहतर टेलीस्ट्रोक सेवाएं प्रदान की जाएंगी।

एम्स में 24 घंटे होगी डेंगू और मलेरिया की जांच

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली में एक नवंबर से डेंगू और मलेरिया की जांच 24 घंटे होगी। दिल्ली में पिछले कुछ समय से डेंगू के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। बढ़ते मामलों के बीच डेंगू के लक्षण के साथ एम्स में बड़ी संख्या में मरीज पहुंच रहे हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। ऐसे मरीजों को जल्द से जल्द उपचार देने के लिए जांच में तेजी लाने का फैसला लिया गया है। शनिवार को एम्स निदेशक ने एक आदेश दिया है जिसमें सप्ताह के सभी दिन, 24 घंटे डेंगू-मलेरिया के अलावा अन्य जांच करने को कहा गया है। इससे पहले एम्स में एमआरआई सहित अन्य जांचों को भी 24 घंटे करने का आदेश दिया जा चुका है। 

एम्स प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार, वयस्क और बाल चिकित्सा आपातकालीन विभाग में भर्ती या निगरानी में रखे गए मरीजों की जांच 1 नवंबर से 24 घंटे की जाएगी। साथ ही इन मरीजों की रिपोर्ट भी कम से कम समय में उपलब्ध कराई जाएगी। इन जांच में डेंगू सीरोलॉजी के साथ एनएस 1 एंटीजन (एलिसा), मलेरिया डायग्नोस्टिक वर्कअप (एक्रिडीन ऑरेंज और गिमेसा स्टेनिंग), मूत्र की नियमित और सूक्ष्म जांच, ब्लड, यूरिन, सीएसएफ के साथ सीएसएफ के लिए माइक्रोबायोलॉजिकल जांच शामिल हैं। 

ट्रामा में दलाल बेच रहे थे उपकरण : एम्स परिसर में निजी एजेंट व दलालों पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद भी ये नए-नए तरीके से एम्स परिसर में चिकित्सकीय उपकरण व सामान बेचने का प्रयास कर रहे हैं। एम्स के सुरक्षा अधिकारी ने एम्स ट्रामा सेंटर में ऐसे पांच लोगों को पकड़ा है तो हड्डी रोग में इस्तेमाल होने वाले चिकित्सा सामान को महंगे दाम पर बेचने का प्रयास कर रहे थे। इन सभी के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया है। इससे पहले भी एम्स    परिसर में निजी दलालों को पकड़ा जा चुका है।

एम्स में खत्म हो जाएगी अवैध पार्किंग की भीड़

एम्स परिसर में अवैध पार्किंग की समस्या को खत्म करने के लिए एम्स निदेशक ने 1 अप्रैल 2023 से सभी पार्किंग स्ट्रीकर को खत्म कर दिया है। इनकी जगह पर केवल आरएफआईडी स्ट्रीकर ही जारी किए जाएंगे। 

निदेशक ने 31 जनवरी तक सभी गेट पर आरएफआईडी गेट लगाने का निर्देश दिया है। इस फैसले के बाद एम्स परिसर में अवैध पार्किंग की समस्या खत्म हो जाएगी। वहीं मरीजों की सुविधा के लिए शटल सेवाओं को बढ़ाया जाएगा। इस सेवा में गर्भवती महिला, बुजुर्ग, दिव्यांग और जरूरतमंद लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही 50 नए शटल भी लाए जाएंगे, जिनकी मदद से एम्स परिसर में आना-जाना आसान हो जाएगा।

अब तक परिसर में आवागमन की सुविधा न होने से मरीज और उनके तीमारदारों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। नई सेवा शुरू होने से उनकी आवागमन की परेशानी खत्म हो जाएगी। उन्हें बेवजह की रोकटोक से निजात मिलेगी। 

एम्स इमरजेंसी में पता चल जाएगा किस अस्पताल में खाली है बेड

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के इमरजेंसी में आने वाले स्थिर मरीजों को रेफर होने के बाद सड़कों पर भटकना नहीं होगा। रेफर होने के साथ ही उन्हें पता होगा कि एम्स से किस अस्पताल में जाना है। इस मामले में शनिवार को एम्स निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने शनिवार को दिल्ली के 15 अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षकों के साथ बैठक कर रेफरल नीति तैयार की। 

इस नीति में तय किया गया कि दिल्ली के प्रमुख 15 अस्पताल अपने यहां खाली बेड की जानकारी एम्स इमरजेंसी में देंगे। इसकी सूचना इमरजेंसी में लगे डेशबर्ड से मरीजों को मिल जाएगी। वहीं एम्स से मरीज के निकलते ही उक्त अस्पताल को भी सूचना पहुंच जाएगी। बैठक में तय हुआ कि सभी अस्पताल अपनी इमरजेंसी में नोडल अधिकारी रखेंगे जो आपस में एक दूसरे से जुड़े रहेंगे। ये नोडल अधिकारी मरीजों को रेफर करने से पहले आपस में बात कर सूचना साझा कर लेंगे जिससे मरीज को परेशानी न हो। 

अभी तक छोटे अस्पतालों से तो गंभीर मरीजों को बड़े अस्पतालों में रेफर किया जाता है लेकिन बड़े अस्पताल भी स्थिर मरीजों को छोटे अस्पतालों में  रेफर करेंगे। बैठक के दौरान एम्स ने दूसरे अस्पतालों को अपना इमरजेंसी का ट्रेकर भी दिखाया। इसमें डॉक्टर इमरजेंसी में मौजूद मरीज की कौन सी जांच हो चुकी हैं और कौन सी नहीं, ये किसी भी समय दूर से ही देख सकता है। संबधित विभाग या व्यक्ति को जांच के लिए उसी समय वहीं से अलर्ट भी भेज सकता है। 

एम्स देगा प्रशिक्षण 

एम्स प्रशासन ने कहा कि जरूरत पड़ने पर एम्स अन्य अस्पतालों के डॉक्टर व स्टाफ को प्रशिक्षण भी देगा। एक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक ने कहा कि उनके पास जगह है लेकिन संसाधन और लोग नहीं है तो एम्स के निदेशक ने कहा कि सभी मरीज हमारे हैं। हम जरूरत के हिसाब से प्रशिक्षण के अलावा अपने संसाधन भी दूसरे अस्पतालों को साझा कर सकते हैं। इस बैठक में मौजूद सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर बीएल शेरवाल ने भी सभी प्रस्तावों पर सहमति जताई।

 

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