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Opinion: आजादी का अमृत महोत्सव और प्रधानमंत्री मोदी का विजन

गुरुवार को अहमदाबाद में विश्व के सबसे बड़े स्टेडियम में 36वें राष्ट्रीय खेलों का शुभारंभ करते वक़्त प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘मैं स्पोर्ट्स के साथियों को अक्सर कहता हूँ- Success starts with action! यानी, आपने जिस क्षण शुरुआत कर दी, उसी क्षण सफलता की शुरुआत भी हो गई.’ उनका ये विजन आज़ादी के अमृत महोत्सव में भी साफ़ दिखता है. भारत की आजादी के 75 वर्ष इसी साल ज़रूर हुए हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस अमृत काल की तैयारियों की शुरुवात बहुत समय पहले ही कर दी थी. बीतें 8 वर्षों की बड़ी उपलब्धियां तो हम सब जानते हैं पर आज बात मोदी शासन के उस आचरण की जिसने अमृत महोत्सव की नींव डाली.

स्वच्छ भारत अभियान

प्रधानमंत्री मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान को देश भर में एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में शुरू किया. स्वच्छ भारत मिशन की राजपथ पर शुरूआत करते हुए उन्होंने कहा कि “एक स्वच्छ भारत के द्वारा ही देश 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर अपनी सर्वोत्तम श्रद्धांजलि दे सकता है.” ये कोई आम अभियान नहीं था, खुद प्रधानमंत्री ने मंदिर मार्ग पुलिस थाने में सफाई करते हुए इसकी नींव डाली. उन्होंने नौ लोगों को स्वच्छता अभियान में शामिल होने के लिए भी आमंत्रित किया और उनमें से हर एक से यह अनुरोध किया वो अन्य नौ लोगों को इस पहल में शामिल होने के लिए प्रेरित करें. स्वच्छता से रहना तो हर कोई चाहता है लेकिन उसे एक जन अभियान की शक्ल देने में मोदी विजन का एक नज़ारा तब देखने को मिला जब उन्होंने इसमें बच्चो को शामिल किया. बच्चे ना केवल खुद स्वच्छता को लेकर सतर्क हुए बल्कि बड़ों को भी टोकने लगे. आज हम जिस नये भारत को देख रहे हैं, उसकी तह में यही अभियान है.

प्रतिभा सम्मान

देश में प्रतिभाओं का सम्मान करने वाले पद्म पुरुष्कारों को लेकर अक्सर ये आरोप लगते थे कि सरकारें इनका वितरण अपने निजी हित, व्यक्तिगत पसंद, सम्बन्ध और वोट बैंक की राजनीति के लिए करती हैं. जनता पार्टी की सरकार ने तो इसी के चलते 1977-80 के बीच इन पुरस्कारों को बंद भी कर दिया था. मोदी सरकार ने पुरस्कारों के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू किया ताकी भारत के सबसे बड़े सम्मानों को चाटुकार संस्कृति और वोट बैंक की राजनीति से दूर रखा जाए. बीते कुछ वर्षों की पद्म पुरुष्कारों की सूची देखिये, जन सरोकारों और ज़मीन से जुड़े आम लोग दिखेंगे. ऐसे लोग जो केंद्रीय सत्ता के केंद्र दिल्ली क्या राज्यों की राजधानी से भी कोसो दूर रहे हैं. समाज के कमज़ोर वर्गों से आने वाले, नंगे पैर रहने वाले बेहद साधारण लोग जिन्होंने महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों, दिव्यांगों और पर्यावरण के लिए असाधारण कल्याण काम किया है और जो हर लिहाज़ से पुरस्कार के काबिल हैं.

गुलामी की मानसिकता से मुक्ति

आजादी के अमृत महोत्सव तभी मनाना सार्थक होगा जब भारत ना केवल गुलामी के हर प्रतीक चिह्न से मुक्ति पा ले बल्कि गुलामी की मानसिकता से भी आज़ाद हो जाए. इस कड़ी में मोदी सरकार 8 साल से काम कर रही है. 2014 से अब तक करीब 1,500 से अधिक पुराने और अप्रचलित कानूनों को निरस्त कर दिया है. इनमें से अधिकतर कानून ब्रिटिश काल में बनाए गए थे. ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ के हर निशान से मुक्ति के क्रम में राजपथ और सेंट्रल विस्टा लॉन अब कर्तव्य पथ है, भारतीय नौसेना से सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटाकर इसे छत्रपति शिवाजी महाराज की मुहर से प्रेरित एक ध्वज के साथ बदल दिया गया. रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग किया गया, स्वयं प्रधानमंत्री निवास का भी पता बदलकर अब 7, लोक कल्याण मार्ग हो गया है. 92 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए सरकार ने रेल बजट को आम बजट के साथ मिला दिया. इस वर्ष गणतंत्र दिवस के दौरान, ‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह के समापन पर बजने वाली धुन ‘एबाइड विद मी’ को हटाकर कवि प्रदीप की रचना ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ की धुन बजायी गई.

वीआईपी कल्चर पर प्रहार

देश आज़ाद तो हो गया लेकिन सामंती मानसिकता जस की तस बनी रही. आम और ख़ास के बीच के फर्क को ख़त्म करने की शुरुवात आज़ादी के अमृत काल से पहले अप्रैल 2017 में तब हुई जब मोदी कैबिनेट ने फैसला किया कि एक मई से सरकारी वाहनों पर लाल बत्ती नहीं लगाई जा सकेगी. देश का प्रधानमंत्री जो अपने आपको प्रधान सेवक और चौकीदार कहता है, ने फैसला लिया कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों सहित किसी भी VVIP के वाहन पर लालबत्ती नहीं होगी. कोरोना महामारी में जब जीवन मृत्यु का संघर्ष हो रहा था, तब भी टीकाकरण के दौरान VVIP कल्चर कहीं नहीं दिखा. खुद प्रधानमंत्री मोदी की माँ आम जन की तरह नोटबंदी में लाइन में दिखी जिसने सारी मशीनरी को स्पष्ट सन्देश दे दिया कि विजन मोदी में सामंती ठाटबाट की कोई जगह नहीं है.

खेलोगे कूदोगे तो बनोगे नवाब

आज किसी भी देश की छवि दुनिया भर में इस बात पर निर्भर करती है कि वो खेलों के मंच पर कैसी प्रदर्शन करते हैं. खिलाड़ियों का दमदार प्रदर्शन, अन्य क्षेत्रों में भी देश की जीत का रास्ता प्रशस्त करता है. आज़ादी के अमृत काल में भारत ने इस क्षेत्र में काफी प्रगति की है. पिछले 8 वर्षों में देश का खेल बजट करीब 70 प्रतिशत बढ़ा है. 2014 से पहले हमारे खिलाड़ी सिर्फ 20-25 खेलों के सौ से भी कम इंटरनेशनल इवेंट्स में हिस्सा लेते थे लेकिन आज भारतीय खिलाड़ी 300 से भी ज्यादा इंटरनेशनल इवेंट्स में 40 अलग-अलग खेलों में हिस्सा लेते हैं. साफ़ है कि आज खिलाड़ियों को ज्यादा से ज्यादा संसाधन भी दिए जा रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा अवसर भी मिल रहे हैं. फिट इंडिया और खेलो इंडिया जैसे प्रयास हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस जैसे उत्सव, सबने भारत में खेल कूद को लेकर नयी सोच जाग्रत की है.

अन्त्योदय

अंत्योदय यानी समाज के सबसे निचले स्तर पर मौजूद व्यक्ति का कल्याण. आज़ादी के अमृत महोत्सव के लिए ज़रूरी है कि सरकार की योजनायें उस अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे. बीते 8 वर्षों में गरीब कल्याण की बड़ी योजनायें जैसे आवास योजना, सस्ती दवाएं, आयुष्मान, मुद्रा, जनधन, उज्जवला, शौचालयों का निर्माण, दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना भारत के गरीब तक पहुँच रही है जिसके कारण उनमें ना केवल सामाजिक सुरक्षा बढ़ी है बल्कि औसत जीवन स्तर में भी बढ़ोतरी हुई है. अकेले आयुष्मान भारत योजना के तहत देश में अभी तक लगभग 4 करोड़ गरीब मरीज़ों को मुफ्त इलाज मिल चुका है.

दरअसल आज़ादी का अमृत महोत्सव केवल देश की स्वतंत्रता का ही उत्सव नहीं है बल्कि ये अमृत काल है आम भारतीय और उसकी जीवन पद्धति का. नये संकल्पों का और उनकी सिद्धि का. ध्यान रहे कि ऐसे संकल्प केवल कुछ महीनों के प्रयास से सिद्ध नहीं होते. इनके लिये जिस क्षण सोचा उसी क्षण से प्रयत्न और पुरुषार्थ आरम्भ कर देना होता है

Tags: Azadi Ka Amrit Mahotsav, Pm narendra modi

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