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राजधानी में प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार ने डीजल वाहनों के लिए 10 वर्ष की उम्र तय की है। हालांकि, अपनी उम्र सीमा के पूरा होने से पहले सिर्फ छह सालों में ही कारें वातावरण में जहर घोलना शुरू कर देती हैं। यह बात हाल ही में दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (डीटीयू) द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आई है। यह अध्ययन स्प्रींजर के पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान(ईएसपीआर) जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
डीटीयू के पर्यावरणीय अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. राजीव कुमार मिश्रा ने बताया कि अध्ययन के लिए गाड़ियों की उम्र, माइलेज व रखरखाव को आधार बनाया गया था। साथ ही इसमें देश में कारें बेच रही पांच प्रमुख कंपनियों की डीजल गाड़ियों को शामिल किया गया।
इसमें वे सभी कारें थी, जो दिल्ली की अलग-अलग अथारिटी में पंजीकृत थीं। पता चला कि जिन गाड़ियों की उम्र छह साल से अधिक हो गई थी, वे कारें अधिक प्रदूषण कर रही थी। गाड़ियों की माइलेज भी प्रदूषण को लेकर प्रमुख जिम्मेदार पाई गई। जिन गाड़ियों की अच्छी देखभाल की गई थी, वे कारें कम प्रदूषण कर रही थी।
अध्ययन में शामिल अभिनव पांडेय ने कहा कि अध्ययन में देखा गया कि भारत स्टेज-4 की गाड़ियां, जिनका रखरखाव अधिक रखा गया था, वे बीएस-3 की खराब श्रेणियां में रखी गई गाड़ियों से कम वातावरण को प्रदूषित कर रही थी। बीएस-4 श्रेणी के वाहन साढ़े सात साल पूरा होने के बाद मानकों को पूरा नहीं कर रहे थे, जबकि बीएस-3 श्रेणी में नौ साल बाद वाहन मानकों को पूरा करने में विफल हो रहे थे।
इसी प्रकार बीएस-4 श्रेणी में वाहन 95 हजार किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद मानकों पर खरे नहीं उतरे। जबकि बीएस-3 श्रेणी में 1 लाख 25 हजार किलोमीटर चलने के बाद वाहन मानकों को पूरा नहीं कर रहे थे।
460 गाड़ियों पर किया गया था अध्ययन
डीटीयू के पर्यावरणीय विभाग ने अध्ययन के लिए दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों से पांच ब्रांड कंपनियों की डीजल की 460 गाड़ियों को शामिल किया गया था। करीब छह माह तक चले इस अध्ययन में गाड़ियों की उम्र, माइलेज व रखरखाव श्रेणी में डाटा इकट्ठा किया गया। वहीं, प्रदूषण के प्रमाणीकरण के लिए पहुंचने वाली गाड़ियों के पहुंचने के दौरान धुआं छोड़ने वाली वाहन चालकों से जानकारी ली गई।